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जाती है, तब कहीं एक ज्योतिर्मय दीप का निर्माण होता है।
हम सभी एक जैसी मिट्टी से निर्मित हैं । मिट्टी के तल पर कोई अलग नहीं है। सभी माँ की कोख से उत्पन्न हुए हैं, सबने उसके आँचल का दूध पिया है। अन्न, पानी और वही भोजन करके हम सभी बड़े हुए हैं। देखा जाए तो मिट्टी के तल पर कोई फ़र्क नहीं है.सारा फ़र्क ज्योति के तल पर होता है। मिट्टी के तल पर महावीर
और हम में कोई फ़र्क नहीं है। फिर भी हम जानते हैं कि उनमें और हम में फ़र्क है। मिट्टी के तल पर नहीं वरन् ज्योति के तल पर, दीये के तल पर, प्रकाश के तल पर। कौन व्यक्ति अपने जीवन में संसार में रह गया, कौन अध्यात्म के तल पर पहुँचा या कैवल्य और ऋतम्भरा प्रज्ञा के तल पर पहुँच पाया यह उसकी आध्यात्मिक ऊँचाई के आधार पर ही निर्णय होता है। अगर हम भी स्वयं को मिट्टी तक ही केन्द्रित करेंगे तो वही खाना-पीना, मनोरंजन भोग-उपभोग अर्थात् संसार ही दिखाई देगा और यदि हम ज्योति को, चेतना को, अपनी आत्मा, अपने श्री प्रभु को महत्त्व या प्रमुखता देते हैं तो निश्चय ही ऊपर उठ जाएँगे। पतंजलि के योगसूत्र हमें उस चिन्मय ज्योति की
ओर बढ़ाना चाहते हैं ताकि व्यक्ति मिट्टी से ऊपर उठकर अपनी चैतन्य-शक्ति का मालिक बने, अपने चेतना के लोक में विहार करने में समर्थ हो सके।
अभी तक हम प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि जैसे तत्त्वों को समझकर यह जान चुके हैं कि हमारी इन्द्रियाँ जो बाहर की ओर गतिशील हैं, बाहर से जुड़ी हुई हैं, उनका स्वयं के चित्त की ओर लौटकर आना, साधना-मार्ग का पहला चरण है । स्वयं के घट के भीतर केन्द्रित करना साधना का दूसरा चरण है, लेकिन उस केन्द्रीकरण में किसी भी तरह का व्यवधान आना अर्थात् अपने लक्ष्य और ध्येय के प्रति एकतान, एकलय बनकर रहना यह साधना का तीसरा चरण है, लेकिन ध्यान करते हुए साधक की वह स्थिति बन जाए कि ध्यान शून्य जैसा हो जाए और वह अपने ध्येय में इस तरह अन्तर्लीन हो जाता है कि ध्याता, ध्यान और ध्येय तीनों के भेद मिट जाते हैं और वह अपनी अन्तरात्मा में, अपनी चेतना में अन्तर्लीन हो जाता है चह चौथी स्थिति समाधि की है।
एक बात और ध्यान में ले लेना चाहिए कि हर वह व्यक्ति जो ध्यान में रुचि रखता है वह इन चरणों को उपलब्ध कर सकता है। यह न समझें कि इसको आप हासिल नहीं कर सकते। बस, ज़रूरत है तो सिर्फ़ इच्छाशक्ति की। कोई भी कुछ जन्म से सीखकर नहीं आता। धीरे-धीरे अभ्यास से सब कुछ पाया जाता है। स्कूल जाने से ही पढ़ना-लिखना आता है और क्रमशः उन्नति करते हुए ज्ञान के विराट
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