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मैंने तब जीवन में यह सीखा और जाना कि इसे कहते हैं असली ज्ञान और असली विनम्रता। जिस व्यक्ति में इतना धैर्य है कि वह अपनी कुर्सी खुद उठा रहा है, पौन घंटे तक प्रतीक्षा करता रहा, यह कहने की बजाय कि आपने मुझे याद किया, बताइये क्या काम है? इतना धैर्य! चर्चा शुरू हो गई। चर्चा के दौरान मैंने उनसे कुछ पूछा तो उन्होंने अत्यंत सरलता से कहा - मैं नहीं जानता कि इसका क्या अर्थ है, उत्तर है। आप मेरे अज्ञान को क्षमा करें। ____ मैंने अपने जीवन में पहली दफ़ा इतने विद्वान और उच्च पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा इतने विनम्र शब्दों का प्रयोग देखा। मैंने जाना कि किसी व्यक्ति को अपने अहं को किस हद तक तोड़ देना चाहिए यह उसका उदाहरण है। __अहंकार को तोड़ने का सबसे सीधा सरल मंत्र है नमस्कार । वर्तमान युग का सबसे बड़ा दोष है कि लोग झुकना नहीं जानते। सभी अकड़ कर रहना पसंद करते हैं। एक समय था जब लोग पंचांग नमस्कार करते थे, अब तो ज़रा भी कमर और घुटने नहीं झुकते, खड़े-खड़े ही नमस्कार कर लिया जाता है। यह अहंकार का पोषण है। अगर कोई झुक सकता है तो कृपया पूरा झुकिये। यह दूसरे के लिए झुकना नहीं है स्वयं के अहंभाव को तोड़ने के लिये झुक रहे हैं।
जैनों का प्रसिद्ध मंत्र है : नवकार मंत्र । नवकार मंत्र का पहला शब्द है : णमो। णमो का अर्थ है नमस्कार। णमो का एक और अर्थ है : 'ण' - अर्थात् नहीं, 'मो' -यानी मैं - अर्थात् जहाँ मैं नहीं तू ही तू है । तू जो सर्व व्यापी है उसके सामने मेरा अस्तित्व ही क्या है ! रावण और कंस जैसे लोग जो तुझे चुनौती देते थे वे ही न रहे तो मेरी औक़ात क्या? आकाश को देखो और प्रेरणा लो कि मुझे ऊँचे और ऊँचे उठना है। धरती से प्रेरणा लो कि गुरूर किस बात का, अन्ततः तो इस मिट्टी में ही मिल जाना
है।
अहंभाव- चित्त के क्लेशों और संक्लेशों को निमंत्रण देने का द्वार । एक महान और विद्वान संत हुए हैं उपाध्याय यशोविजय महाराज। कहते हैं ये इतने विद्वान थे कि चार महीने तक उन्होंने केवल आठ अक्षरों पर ही प्रवचन दिया - संयोगा विप्पमुक्कस्स - चार महीने तक इन शब्दों का विवेचन करते रहे, अलग-अलग दृष्टिकोण से। उनकी इस विद्वत्ता से प्रेरित और प्रभावित होकर उस समय के राजा ने 'विशारद' की पदवी प्रदान की। विशारद पदवी मिलने से जब वे चलते तो उनके आगे चार ध्वजाएँ रहती थीं। लोग देखते ध्वजा वालो महाराज आ रहे हैं। चलतेचलते, घूमते-घूमते हुए वे दिल्ली पहुंचे। वहाँ उनके प्रवचन हुए। चार ध्वजाधारी संत के खूब ठाठ-बाट थे। उनके प्रवचनों में एक बुजुर्ग अनुभवी महिला भी आई
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