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सकता है। परिवर्तनशीलता के सिद्धांत को समझें। पेड़ पर पत्तियाँ आती हैं, फूल खिलते हैं, सुंदर लगते हैं, ख़ुशबू होती है, उनका रंग सुहाना लगता है, आँखों को, नासिका को, होठों को अलग आनंद मिलता है। लेकिन पत्तियों को, फलों को.पेडों को गिरते हुए देखते हैं तो पता चलता है कि यहाँ सब कुछ परिवर्तनशील है। लोग बदल जाते हैं, संबंध बदल जाते हैं, महल खंडहर बन जाते हैं, यहाँ सब बदल जाता है। सागर की, सरोवर की उठती-गिरती लहरों को देखो - यहाँ सब बदल जाता है। मोह, माया, आसक्ति के प्रभाव को तोड़ने का तरीका है परिवर्तनशीलता को जाननासमझना। सभी के मन में अलग-अलग विचार धाराओं का प्रवाह होता है, लेकिन जानो कि यह चित्त की चंचलता ही उसकी प्रकृति है, यह उसका स्वभाव है। इस चंचलता को एकाग्र कर मन की विस्फोटक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकृति को अगर ठीक ढंग से समझ लिया जाए तो मन से बड़ा सहायक जीवन की ऊर्जा का पिंड दूसरा नहीं मिल सकता।
वह क्या है जिसके सहारे हिलेरी और तेनसिंह ने एवरेस्ट पर चढ़ाई कर ली? वह कौन-सी ताक़त है जिससे मात्र चौदह-पन्द्रह वर्ष की आयु में शिवाजी ने किला फ़तह कर लिया। वह कौन-सी ताक़त है कि उन्नीस वर्ष की आयु में वाशिंगटन अमेरिका का सेनापति बन गया। हमें समझना चाहिए कि यह मन की, आत्मा की ताक़त है। यदि व्यक्ति का बिखरा हुआ मन एकाग्र हो जाए तो महान आविष्कार हो जाते हैं। कहा जाता है कि एडीसन की पत्नी उनसे कहती कि चलो कहीं घूम आएँ। क्या हर समय विज्ञानशाला में ही घुसे रहते हो! पत्नी का मान रखने के लिए वे बाहर निकल आए और पूछने लगे- कहाँ चलें? पत्नी ने कहा - जहाँ तुम्हारा मन करे।वे पुनः विज्ञानशाला में प्रविष्ट हो जाते हैं। पत्नी पूछती है - यह क्या, तुम तो वापस वहीं चले गए। एडीसन कहते हैं -तुम्हीं ने तो कहा था जहाँ मेरा मन करे। मेरा मन तो यहीं जाने को करता है।
हम सभी जानते हैं थॉमस अल्वा एडीसन ने अनेक आविष्कार किए और उनमें से एक है रात को भी दिन में बदलने वाला बल्ब।
यह मन जब एकाग्र हो जाता है तो लग ही जाता है। जब हम तन्मयता से लग जाएँगे तो परिणाम ज़रूर आएगा।मन की एकाग्रता जीवन की सबसे बड़ी दौलत है। मन की एकाग्रता ज्ञान-विज्ञान, किसी भी कार्य में व्यापार की सफलता का पहला
और अंतिम मंत्र है। इसीलिए ध्यान और समाधि के लिए प्रत्याहार अनिवार्य चरण है। प्रत्याहार से गुजरते हुए हम धारणा की ओर बढ़ेंगे और धारणा मन की एकाग्रता
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