Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 147
________________ भूल जाओ। प्रत्याहार - इन्द्रियाँ जो कि संसार से जुड़ी हुई हैं, विषयों से संबंधित हैं वहाँ से अपनी आसक्तियों को दूर करते हुए, विषयों से विमुख होकर स्वयं में लौट आओ। बाहर से भीतर लौटो। परमात्मा के लिए उपनिषद् कहते हैं - स एकाकी न रमे एकोऽहं बहुस्याम् - वह अकेला था, अकेलेपन से ऊब गया, सोचा बहुत हो जाऊँ और बहुत हो गया। बहुत हो गया तो संसार बन गया और जब बहुत हो गया तो उत्कंठा जागी कि अपने आप में लौट आऊँ तो स्वयं में लौट गया और बैकंठ में जाकर अपना अखंड निवास बना लिया। यह हुआ उसका संन्यास लेना, समाधिस्थ होना, आत्मलीन हो जाना। महावीर के दो नाम चलते हैं - वर्धमान और महावीर । वर्धमान का अर्थ है बढ़ने वाला। कहा जाता है कि जब महावीर जन्मे तब उनके राज्य में श्री-समृद्धि खूब बढ़ी तब उनके पिता ने उनका वर्धमान नाम दिया, लेकिन वर्धमान ने जब संन्यास लिया तो महावीर पैदा हुआ। आत्मज्ञान की साधना वर्धमान होने से नहीं अपितु महावीर होने से होती है। महावीर अपने आप में लौटता है। जब वे वर्धमान थे तो पत्नी को महत्त्व दिया लेकिन जब महावीर हो गए तो परमात्मा को महत्त्व दिया। इतना ही फ़र्क है। एक में व्यक्ति पत्नी को दूसरे में परमात्मा को महत्त्व देता है। पत्नी को महत्त्व दोगे तो संसार मिलेगा और परमात्मा को महत्त्व दोगे तो जन्मों से चल रही जन्म-मरण की धारा से मुक्ति मिलेगी, निर्वाण और मोक्ष मिलेगा। वह अपने वास्तविक सत्य, वास्तविक आलोक और वास्तविक अध्यात्म को उपलब्ध होगा। संसार की ओर जाओगे तो संतानें होंगी और परमात्मा की ओर जाओगे तो अनंत सिद्धियाँ, अनंत निधियाँ, प्रज्ञा का अनंत प्रकाश, कैवल्य का अनंत बोध इस तरह की संतानें हमारे भीतर जन्म लेंगी। यम, नियम, आसन, प्राणायाम बीज बोने की तरह हैं, प्रत्याहार अंकुरण और धारणा, ध्यान समाधि की ओर बढ़ना कलियों का फूल बन जाना है। हम बाहर रहने के अभ्यस्त हैं लेकिन अब हमें भीतर जाना है। एक प्रसिद्ध कहानी है - इस्लाम धर्म की महान साध्वी राबिया वसी की।राबिया अपनी झोंपड़ी के भीतर कुछ ढूँढ रही थी कि वहाँ से गुजर रहे कुछ फ़क़ीरों ने उसे ऐसा करते देख खुद भी ढूँढने में मदद करने लगे। राबिया ने देखा कि कुटिया के बाहर प्रकाश है तो वह बाहर निकल आई और वहाँ ढूँढने लगी। फ़क़ीरों ने देखा तो उन्होंने उसका अनुसरण किया कि राबिया वृद्ध है कम दिखाई देता होगा, वे भी उसकी मदद करने 148/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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