Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 146
________________ बजाय यह लिखा जाए कि श्री..... इतनी तारीख से इतनी तारीख तक पृथ्वी-ग्रह पर रहे। यह बोध हमें अनासक्त, मुक्त, निर्मोही, वीतरागी और कमल का फूल बनाएगा। पवित्र पुस्तकों और ज्ञानीजनों के सान्निध्य और स्वानुभूति से व्यक्ति अपने वास्तविक सत्य को जान लेता है। पुस्तकों से जानना ज्ञान का 20% है, गुरुजनों के सान्निध्य से जानना ज्ञान का 30% है, पर स्वयं की प्रत्यक्ष अनुभूति में जानना ज्ञान का शेष 50% जानना है। स्वानुभूति से ही ज्ञान की पूर्णता होती है। पुस्तकों से गुरु तक, गुरु से स्वयं तक पहुँचना ही पूर्णता का ज्ञान है। पतंजलि के माध्यम से हम योग के रहस्यों को उद्घाटित कर रहे हैं। देखा जाए तो योगसूत्र के रूप में हमने पवित्र किताब का आलम्बन लिया है, गुरुजनों के सान्निध्य में ज्ञान की रोशनी में लगातार डूब रहे हैं, यह भी ज्ञान का 30% हिस्सा प्राप्त करने का उपक्रम है। लेकिन जब हम एकांत में बैठकर अपनी साधना में अपने आत्म-चिंतन में स्वयं को ध्यान-दशा में लाते हुए तत्पर होते हैं तब यह अगले 50% की ओर कदम बढ़ाना है। स्वयं को जानने की जितनी जिज्ञासा होती है, वह उतना ही भीतर का आनन्द ले सकता है। प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये स्वयं से मुलाकात की चार सीढ़ियाँ हैं । बिना सीढ़ियों के व्यक्ति महल में सीधे क़दम नहीं रख सकता। ये वे सीढ़ियाँ हैं जिन पर चढ़ने के लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है। कोई भी जाति-व्यवस्था इन सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए आड़े नहीं आती। इन सीढ़ियों से कोई व्यक्ति अंदर प्रवेश पा सकता है। जाति के समीकरण सामाजिक व्यवस्था है। सत्य का इन लेबलों से कुछ लेना-देना नहीं है। सत्य स्वतंत्र है, जाति की सीमाओं से परे है। हम जिस अन्तर्घट, अन्तर-मंदिर की ओर चल रहे हैं वहाँ गुरु-चेला, पति-पत्नी,माता-पिता, संतान कौन है? यह तो एकला चलो रे का रास्ता है। यह तो स्वयं में चलना है। इसीलिए प्रत्याहार पहले कर लिया जाता है ताकि जो लोग साथ में हैं, उन्हें बाहर ही छोड़ दिया जाए। हो सकता है कुछ लोग हमें हमारे मन तक पहुँचाने के लिए साथ आए हों, लेकिन उन्हें साथ लेकर यात्रा पर मत निकलो। जो पहुँचाने आए हैं उन्हें जल्दी ही विदा कर दो। यह कोई ईंट-चूने-पत्थर का मंदिर नहीं है जिसमें सबको आने की इज़ाज़त हो। इसमें तो खुद को ही प्रविष्ट होना है, ख़ुद को ही गहरे पानी पैठ उतरना है ख़ुद में ही जाना है। जिन खोजा तिन पाइयाँ - जो गहरे में जाकर खोजेगा वही पाएगा। भीतर के अन्तर्घट में सभी को आमंत्रण है, सभी का स्वागत है। अन्तर्घट में आकर बाहर को | 147 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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