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एक ही ध्येय में केन्द्रित, एकाग्र हो जाता है तो वह है धारणा। एक उदाहरण देता हूँ -गुरु द्रोणाचार्य अपने सभी शिष्यों को एकत्रित कर पूछते हैं -सामने क्या दिखाई दे रहा है? एक ने कहा - आसमान। दूसरे से पूछा तो कहा कि पहाड़ दिख रहा है। अलग-अलग शिष्य बताते हैं कि पहाड़ के नीचे पेड दिख रहा है। किसी ने कहापेड़ की डाली दिखाई दे रही है। अगले ने कहा – सामने चिड़िया दिखाई दे रही है। अर्जुन से पूछा जाता है कि उसे क्या दिखाई दे रहा है। अर्जुन ने कहा - उसे केवल आँख दिखाई दे रही है।
अगर किसी को शर-संधान करना है तो आसमान में तीर नहीं चलाया जा सकता। पहाड या पेड़ पर तीर चलाने से भी कुछ हासिल नहीं होने वाला। लक्ष्य पर नज़र चाहिए और तीर तभी परिणाम देगा जब विराटता को केन्द्रित करके लक्ष्य पर आ जाएँगे, अपने चित्त पर एक बिंदु पर केन्द्रित कर लेते हैं, एकाग्र कर लेते हैं।
आप विद्यार्थी हैं तो लक्ष्य बनाएँ मेरिट लिस्ट को, तो कम-से-कम प्रथम श्रेणी तक तो पहुँचेंगे। कोई भी परफेक्ट नहीं होता है लेकिन लक्ष्य तो निर्धारित कर सकते हैं, तभी तो प्रयास होंगे, क़दम आगे बढ़ेंगे। अगर मन में मात्र उत्तीर्ण होने की ही आकांक्षा है तो कुछ भी हासिल नहीं हो पाएगा। चाँद का लक्ष्य बनाएँगे तो नंदन वन तो मिल ही जाएगा।
धारणा - अपने चित्त को बाँधो, अपने चित्त को एकाग्र करो। बार-बार अनुरोध करता हूँ कि अर्जुन की तरह आँख (लक्ष्य) पर नज़र रखो। बद्ध कहते हैं - सचेतनता के सूत्र को अपने साथ रखो हर समय।चाहे कुछ भी कर रहे हो। सचेतनजाग्रत रहो। संसार के सारे काम करने पड़ेंगे लेकिन अपनी जागरूकता बनाए रखो। कर्मयोग, सेवायोग, भक्तियोग सभी करो, लेकिन अपने लक्ष्य को कभी विस्मृत मत करो। अरे, चाहो तो नृत्य ही करो, पन्द्रह-बीस मिनट तक नृत्य ही करते रहो, नृत्य भी आपको अन्तर्लीन कर देगा। नृत्य ही बचे, नर्तक खो जाए। कोई देखे तो कहे कि पागल हो गया है। मीराबाई को भी लोगों ने पागल कहा था लेकिन पागल हुए बिना परमात्मा भी नहीं मिलता। भक्ति पागलपन ही है, दुनिया की नज़रों में क्योंकि पागलों की दुनिया में एक समझदार खड़ा हो गया तो सारे पागलों को एक समझदार पागल ही नज़र आता है।
परमात्मा सर्व व्याप्त है। ध्यान में भी परमात्मा, आँखें खोली तो पत्ते-पत्ते में वेद की ऋचाएँ हैं, स्थान-स्थान पर उपनिषद हैं, हर जगह उसका आनंद लो। पेड़ों के नीचे, फूलों के बीच, सरोवर के किनारे सभी जगह परमात्मा का आनंद लो। वह
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