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अंधेरों से लड़ोगे, तो थकोगे, हारोगे संताप से भरोगे
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स्वयं को और दुर्बल करोगे । शांति जो लगातार उपलब्ध है
उसे ही नष्ट करोगे करोगे चीत्कार
कोई न सुनेगा पुकार । अंधेरे तो हैं, रहेंगे, घेरेंगे
बिन बुलाए आएँगे सत्य झुठलाएँगे
अंधेरे हैं, बस उन्हें देखो और जानो उनकी कुटिलता पहचानो और जलाओ निजदीप, बनो संदीप ज्योति का भाव हृदय में पलने दो प्रकाश कितना ही हो मद्धिम अंतस में उसे ही भरने दो। प्रकाश का बोध जीवन में उतरने दो अंधेरे तो हैं, रहेंगे, घेरेंगे
बिन बुलाए आएँगे
देख अन्तस् प्रकाशित चुपचाप लौट जाएँगे ।
सदियों से हमारे जीवन में अंधकार का अस्तित्व रहा है । इसी अंधकार के उन्मूलन के लिए हर वर्ष दीपावली मनाते हैं। दीप जलाते हैं । इसी भावना के साथ कि थोड़ा-सा अंधकार दूर कर सकें। जीवन में छाई निराशा, हताशा, दीन भावनाओं के अंधकार को दूर करने में समर्थ हो सकें। जो व्यक्ति अपने अन्तर्तमस को समझेगा वही प्रकाश के लिए पहल कर सकेगा। जिसे प्रकाश पाना है वही योग
शरण में आएगा। तभी वह अपने भीतर के तमस को, काराओं को, चित्त के क्लेश और संक्लेशों को काटने का पुरुषार्थ करेगा । इसीलिए महर्षि कहते हैं - इंसान की चित्त-वृत्तियों का निरोध ही योग है ।
आप जानें कि योग सामान्य वस्तु नहीं है कि व्यक्ति योग के द्वार पर क़दम रखे
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