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को पुनः पेड़ पर साँधने का पुरुषार्थ कर लो। अँगुलिमाल चौंका। उसने पूछा - वापस कैसे जुड़ सकती है, टूटे हुए पत्ते वापस कैसे जुड़ सकते हैं? तब बुद्ध कहते हैं- तुममें और मुझमें यही फ़र्क है कि मैं जोड़ना जानता हूँ और तुम केवल तोड़ना। जो जोड़े वह अहिंसा और जो तोड़े वह हिंसा।
आज हमारे देश में आपस में जोड़ने का महत्त्व कम हो गया। यही कारण है कि हमें आज़ाद हुए पचास-साठ वर्ष हो गए लेकिन हम पाकिस्तान को अपने से जोड़ नहीं पाए, आज भी हमारे दिल टूटे हुए हैं। आज आपस में कुत्ते-बिल्ली के समान बैर है। जितनी ज़रूरत अहिंसा की भारत को है, उतनी ही ज़रूरत पाकिस्तान को भी है। हिंसा के बल पर पाकिस्तान को नहीं टिकाया जा सकता, पर अहिंसा के बल पर दोनों देशों को स्थायित्व दिया जा सकता है। अहिंसा केवल शाकाहार या पानी छानकर पीना ही नहीं। परिवार में आपसी प्रेम के रिश्ते भी अहिंसा हैं।
कुछ अहिंसा व्यक्ति-सापेक्ष, कुछ जीवन-सापेक्ष, कुछ परिवार-सापेक्ष और कुछ अहिंसा समाज और देश-सापेक्ष होती है, कुछ अहिंसा विश्व-सापेक्ष होती है। अज्ञान-अवस्था में अनजाने में इंसान से ग़लती होना मुमकिन है, पर जो अतीत में हुआ उसका हम प्रायश्चित कर लें और भविष्य के लिए अपने वर्तमान को संकल्पशील बनाएँ कि गलती पुनः नहीं दोहराएँगे। ऐसा हुआ, भारत में आज़ादी प्राप्ति का संघर्ष अपने चरम पर था। तभी एक व्यक्ति के बच्चे की हत्या हो गई। वह व्यक्ति आक्रोश में भर गया। उसने तलवार उठाई और कई मासूमों की जान ले ली। सांझ हुई, उसका गुस्सा ठंडा हुआ और वह दुःखी हो गया कि उसने क्रोध में यह क्या कर डाला? दूसरे दिन वह महात्मा गांधी के पास पहुँचा और प्रायश्चित करने लगा,रोने लगा और कहा कि राष्ट्रपिता,मैंने क्रोध में आकर कई बच्चों की हत्या कर दी है क्योंकि अमुक जाति वाले लोगों ने मेरे बच्चे को मार डाला था। अब मुझे आत्मग्लानि हो रही है, आत्महत्या करने की इच्छा हो रही है। गांधी जी ने कहा - निश्चय ही तुमने जो किया वह गलत था लेकिन तुम्हें वाकई प्रायश्चित करना है तो आत्महत्या करने की बजाय, दूसरी जाति और कौम से नफ़रत करने की बजाय उनके प्रति प्रेम और सद्भाव का आविर्भाव होने दो और जिस जाति वालों ने तुम्हारे बच्चे की हत्या की उस जाति के किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लो और अपने बच्चे की तरह उसका पालन-पोषण करो। यही तुम्हारी ओर से सच्चा प्रायश्चित होगा।
यह है अहिंसा। पहला यम है अहिंसा और दूसरा सत्य है। सत्य महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सत्य ही व्रत है, सत्य ही धर्म है, सत्य ही तप है, सत्य ही आश्रय है। सत्य है
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