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है लेकिन एक पहिया पंक्चर हो जाए तो सारी व्यवस्था बेकार हो जाती है, ट्रक एक फुट भी आगे नहीं बढ़ सकता। यह वायु प्राणवायु है फिर चाहे वह सजीव का संचालन करना हो या निर्जीव का।
वायु संतुलित सम-शीतोष्ण होगी तो हमारे लिए उपयोगी होगी। अति ऊष्ण वायु हमें झुलसा देगी और अति शीतल, ठंडी हवा हमें कंपकंपी छुड़वा देगी। समशीतोष्ण हवा ही हमारे शरीर को सुखदायी लगती है।
कहा जा सकता है कि व्यक्ति अपनी निर्धारित साँसें लेकर ही जन्म लेता है और एक साँस भी अधिक नहीं ले सकता। श्वास के साथ ही जीवन का प्रारम्भ होता है और श्वास पर ही जिंदगी का समापन हो जाता है। आती हई साँस जिंदगी है तो जाती हुई साँस मृत्यु भी हो सकती है। किसी की मृत्यु होने का अर्थ ही यही है कि एक ऐसी साँस जो व्यक्ति ने निकाली तो सही, पर वापस लेने में असफल रहा। श्वास का सातत्य ही जीवन है अर्थात् श्वास आती-जाती बनी रहती है। श्वास के शांत होते ही व्यक्ति की देह भी शांत हो जाती है, फिर उसके अंगोपांग शिथिल हो जाते हैं।
हम सभी जानते हैं कि श्वास हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। अब हमें जानना है कि यह हमारे जीवन में किस तरह कार्य करती है। इसकी इतनी अधिक उपयोगिता क्यों समझी जाती है। हम नासिका से साँस लेते हैं और नासिका से साँस लेना ही लाभप्रद है। मुँह से साँस लेना श्वास को अशुद्ध कर देता है। कैसे? जब मुँह से श्वास लेते हैं तो हवा की गंदगी भी मुँह के द्वारा गले और फेफड़ों तक पहुँच जाती है लेकिन नासिका से श्वास लेने पर वायु की अशुद्धता (धूल-गंदगी के कण) नासिका के रोमों (बालों) में उलझ जाती है और शुद्ध वायु अंदर प्रविष्ट होती है। मुँह आहार ग्रहण करने और वाणी का उच्चारण करने की व्यवस्था है और नासिका साँस लेने और छोड़ने की व्यवस्था है।
ईश्वर बहुत बड़ा इंजीनियर है। उसने हमारी देह में एक भी चीज़ अनावश्यक या अनुपयोगी नहीं बनाई है। सिर के बालों को ही देखिए अगर नहीं होते तब भी कुछ बिगड़ता नहीं लेकिन जब तक ये सिर पर हैं हमें सर्दी, गर्मी और धूप से बचाए रखते हैं। अचानक सिर पर कुछ आ पड़े तो चोट कम लगती है। यह एक प्रकार से सुरक्षा कवच का कार्य करते हैं। आँख, कान, नाखून सबकी अपनी उपयोगिता है। इसलिए प्रकृति कोई भी चीज़ ऐसी उत्पन्न नहीं करती जिसकी उपयोगिता न हो। फूल सभी को चाहिए काँटे नहीं, लेकिन काँटों की भी उपयोगिता है।
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