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से ऊपर तक और ऊपर से नीचे तक सुषुम्ना नाड़ी ही ले जाएगी जो मेरुदण्ड के मध्य से गुजर रही है। अतः मेरुदण्ड सीधा रखें। अगर मेरुदण्ड झुका रहेगा तो ऊर्जा के आवागमन में बाधा खड़ी हो जाएगी। वैसे भी जो रीढ़ को सीधा रखकर बैठते हैं उन्हें स्पाइनल कॉर्ड की तक़लीफ़ जल्दी नहीं होती। मेरुदण्ड के सीधा रहने से ऊपर मस्तिष्क तक और नीचे पाँवों तक ऊर्जा का संचार हो सकता है। स्वयं को स्फूर्तिवान रखें। इसीलिए प्राणायाम के पूर्व योगासन करने की आवश्यकता है ताकि शरीर का प्रमाद, आलस्य और जकड़न दूर हो जाए।
ध्यान के लिए प्राणायाम की भूमिका है, योगासन की नहीं। ध्यान के लिए प्रत्याहार की भूमिका है, प्रत्याहार बनाने के लिए प्राणायाम करते हैं और प्राणायाम को साधने के लिए, शरीर हमारा स्वस्थ हो सके, अनुकूलता आ सके, इसके लिए योगासन किए जाते हैं। ये एक से एक आगे बढ़ने वाले चरण हैं । प्रत्याहार की चर्चा करेंगे, पर अभी इतना जानना ही काफी है कि अपनी भटकती हुई चेतना, भटकते हुए मन को वापस अपने में लौटा लाना ही प्रत्याहार है। प्रत्याहार, धारणा और ध्यान आपस में जुड़े हुए हैं । यम, नियम, आसन, प्राणायाम - यहाँ तक सब शरीर और मन के बहिरंग पहल हैं। प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि - ये चारों अंतरंग पहल हैं। ये हमें अपने-आप से जोड़ते हैं।
हमने जाना कि बाहरी वातावरण कैसा होना चाहिए - शांत-एकांत स्थान हो ताकि प्राणायाम शांति का निमित्त बन सके। अगर कोई प्रक्रिया नहीं आती है तो हाथ में एक माला ले लें और एक सौ आठ दफा शांत-मंद-गहरी श्वास लें और शांत, मंद, गहरी श्वास छोड़ें और श्वास के साथ ॐ का स्मरण भी अगर कर सकें तो यह और अधिक लाभप्रद हो जाएगा। मन को एकाग्र करने में मंत्र सहायक हो जाता है। आप ॐ का, सोऽहं का, अर्हम् का स्मरण कर सकते हैं।
प्राणायाम दो प्रकार के होते हैं - सबीज और निर्बीज। सबीज अर्थात् जिसमें हमने किसी स्मृति को, मंत्र को जोड़ते हुए प्राणायाम किया और निर्बीज अर्थात् जिसमें बिना मंत्र के, बिना शब्द या पद को याद किए शांत भाव से प्राणायाम करते हैं। इसी तरह समाधि भी सबीज और निर्बीज या सविकल्प होती है। यह तो हमें स्वयं को देखना है कि हमारे चित्त में शांति किस प्रकार आती है। सबीज प्राणायाम करने से या निर्बीज प्राणायाम करने से। प्रारम्भ में तो सबीज प्राणायाम ही करना चाहिए और जब प्राणायाम सध जाए तो निर्बीज प्राणायाम कर सकते हैं। लेकिन ख्याल रहे कि कम-से-कम एक सौ आठ बार अर्थात् दस मिनट तक तो प्राणायाम हो ही जाना
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