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साक्षात् ईश्वर के प्रतिनिधि हैं उन्हें प्रणाम करने में शर्म आती है। मंदिर की ध्वजा चढ़ाने के लिए लाखों रुपये की बोली ले लेते हैं, पर मंदिर के बाहर बैठे भिखारी को दो रुपये नहीं दिए जाते विरोधाभास है। लाखों रुपये खर्च करना आसान होता है, पर दो रुपये खर्च करना कठिन होता है । सत्य और अचौर्य जैसे महान धर्म और यम के सहारे ही यह देश ऊँचा उठेगा, समाज और परिवार का बेहतर निर्माण होगा । हममें से प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कमाई का 2' /, हिस्सा 'परोपकार' के लिए निकालना चाहिए । अरे भाई, घर में केवल 'शुभ लाभ' पर ही गौर मत करो, 'शुभ खर्च ' पर भी विचार करो । 'शुभ लाभ' की रोशनी आख़िर 'शुभ खर्च' की खिड़की में से ही आती है।
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जो कम सक्षम हैं वे प्रतिदिन दस रुपये अपने खर्च में से बचत करें और दीनदरिद्र-दुखियों की सहायता में उसका उपयोग करें। अगर देशवासी ऐसा करते हैं तो इस देश में गरीबी का नाम न रहेगा। आज की नीतियाँ तो गरीबों को ही मिटा डालने वाली हैं । प्रतिदिन दस रुपये की बचत से माह के अंत तक तीन सौ रुपये हो जाएँगे, जो किसी छात्र के, बीमार के या अन्य ज़रूरतमंद के लिए बहुत सहायक होंगे। यह ऐसा कल्याणकारी कार्य होगा जिसके लिए इंसानियत आपकी कृतज्ञ होगी और श्री प्रभु के आशीर्वाद भी आप पर बरसेंगे ।
चौथा यम है - ब्रह्मचर्य । मैथुन प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना ब्रह्मचर्य है । स्वदार व्रत अर्थात् स्वपति या स्वपत्नी संतोष व्रत धारण करना कि अपने पति या पत्नी तक सीमित रहना। इतना ही नहीं पति और पत्नी के साथ भी परिसीमन रखें । उसमें भी कुछ मर्यादा पालन करें। ऐसा नहीं कि विवाह हो गया तो निरंकुश स्वीकृति मिल गई। इस पर भी अंकुश । पशु और पक्षी भी, जो मनुष्य के समान पढ़े-लिखे और समझदार नहीं हैं उनकी भी एक ऋतु होती है, वे संयम में रहते हैं । लेकिन मनुष्य जितना आधुनिक, समृद्ध और तकनीकी रूप से उन्नत होता जा रहा है उसकी शैतानी हवस भी बढ़ती जा रही है । ब्रह्मचर्य का पहला नियम हो कि व्यभिचार नहीं करेंगे। दूसरा - अपनी पत्नी / पति तक सीमित रहेंगे। तीसरा - पति/पत्नी के साथ सप्ताह
एक दिन से अधिक सहवास नहीं करेंगे। इस प्रकार की सीमाओं से जीवन में शील और ब्रह्मचर्य घटित होता है । शील और ब्रह्मचर्य से जीवन में प्राणों की ओजस्विता, आत्मा और चेतना की तेजस्विता, देहबल, मनोबल, वचनबल क्रमशः बढ़ता जाता है। एक बार उपभोग करने के बाद उन तत्त्वों के निर्माण में कम-से-कम तीन दिन तो लगते ही हैं । लेकिन निर्माण हो नहीं पाता उसके पहले ही पुनः उपभोग हो जाता है
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