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नहीं। माना कि आपका नियम है बारह-पन्द्रह द्रव्यों को खाने का तो बस उतना ही लें। आजकल शादी-विवाह में सैकड़ों आइटम बनते हैं, पर आप संयम रखें। इतने आइटम होंगे तो चखने-चखने में ही पेट भर जाता है और अनाप-सनाप जूठा जाता है सो अलग। शादी का भोजन अर्थात् पेट की कब्र । सात्त्विक भोजन लीजिए। जो सात्त्विक भोजन करते हैं उन्हें अस्पताल का मुँह अधिक नहीं देखना पड़ता।
धन-रोटी-कपड़ा-मकान सबका अपरिग्रह करें, सब पर अंकुश लगाएँ, सब पर अपना संयम रखें। यही श्रावक-धर्म है। गांधीजी अपरिग्रह का पालन करने वाले इस देश के आदर्श व्यक्ति हुए। जिन्होंने मानव-समाज के समक्ष अपरिग्रही का महान उदाहरण प्रस्तुत किया। एक छोटी-सी धोती और ऊपर ओढ़ने का दुशाला, इसके ऊपर अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। सर्दी में एक कंबली और डाल ली। दो-चार वस्त्रों से अधिक की उन्होंने कभी ज़रूरत ही महसूस न की और वे पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए। अगर वे जवाहरलाल नेहरू की तरह टिप-टॉप रहते तो प्रसिद्धि तो मिलती, किंतु दर्जा नेहरू जी जितना ही मिल पाता। आज उनकी स्थिति नेहरू जी से हज़ार गुना ऊपर है।
राजा आदरणीय हो सकता है, पर पूजा तो त्यागी की ही होती है। महावीर, राम, बुद्ध आज भी पूजे जाते हैं क्योंकि उन्होंने राजा होकर भी त्याग दिया था सब कुछ। सिकंदर या अकबर के स्टेच्यू तो ज़रूर बनाए जा सकते हैं पर यह दुनिया त्यागी का ही सम्मान करेगी। इसीलिए तो -
वाह रे गांधी! क्या चली है तेरे नाम की आंधी। कल तक फिरते थे लंगोट में आज बैठे हो
पाँच सौ के नोट में। इससे सुंदर अपरिग्रह का क्या उदाहरण मिलेगा कि जो कल तक एक धोती दुपट्टे में घूमता था वह आज देश की मुद्रा पर अंकित है। यह अंकन इसीलिए है कि हमें भी उनकी तरह अपरिग्रह का पाठ मिले। यह प्रकाश किरण हमें भी मिले। जो ग्रहण करेगा उसे धर्म मिलेगा अन्यथा भोग-विलास में तो उलझे ही हैं। __ ये पाँच यम योग और समाधि के प्रवेश द्वार हैं। योग के आठ अंगों में से हम यम को समझ चुके हैं । यम इसीलिए ज़रूरी है कि हमारे जीवन में नैतिक मूल्य हो, सामाजिक और मानवीय मूल्य हों। जब कोई समाज और नैतिकता की दृष्टि से
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