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व्यक्ति ध्यान और समाधि जैसी ऊँचाइयों को उपलब्ध नहीं कर पाएगा। न तो पंद्रह मिनट में ध्यान सधता है, न ही एक घंटे में समाधि उपलब्ध होती है, न ही दो घंटे में कैवल्य या सर्वज्ञता मिलती है। जन्मों-जन्मों के कर्म,संस्कार,प्रकृति, वृत्तियाँ हमारे घातक व आत्मघातक मनोरोग, वासनाएँ, विकार, इच्छाएँ, तृष्णाएँ, कामनाएँ आदि अनेकानेक उपद्रव हमारे साथ जुड़े हुए हैं और ये उपद्रव कुछ समय में सध नहीं जाते।
हमारे धार्मिक आख्यान कहते हैं भाव-श्रेणी की उच्चतम अवस्था में इलायची कुमार को रस्सी पर नृत्य करते-करते कैवल्य उपलब्ध हो गया। भावों की उच्च श्रृंखला में माता मरुदेवी को हाथी के हौदे पर बैठे-बैठे केवलज्ञान प्राप्त हो गया। पढ़ने-सुनने में तो ये कहानियाँ बहुत अच्छी लगती हैं, हमें अपनी भावशुद्धि के लिए प्रेरणा देती हैं, लेकिन जब इन्हें जीवन में व्यावहारिक रूप से जोड़ते हैं तब प्रतीत होता है कि अपनी भावदशाओं में हम भी कई मर्तबा इतने उत्कर्ष को उपलब्ध हुए, फिर भी हमें वह परिणाम नहीं मिला जो धार्मिक पुस्तकें बयान करती हैं।
ऐसा लगता है कि भावोत्कर्ष अलग और हमारे मनोविकार, मन की कमजोरियाँ, चित्त के संस्कार और कर्म-प्रकृति संश्लिष्ट हैं। ये पल में नहीं टूटतीं, पल में ही ख़त्म नहीं होतीं। इंसान को हर सफलता के लिए संघर्ष करना होता है। नदी का पानी अगर पत्थरों से संघर्ष नहीं करेगा तो उसमें से कभी कलकल की मधुर ध्वनि नहीं आएगी। जब तक चंदन घिसेगा नहीं, खुशबू नहीं देगा। दीपक जलेगा नहीं तो रोशनी कैसे बिखेरेगा। हर श्रेष्ठता के लिए तपना पड़ता है,खपना और जपना पड़ता है, अपना सब कुछ दाँव पर लगा देना होता है तभी कुछ परिणाम हासिल हो सकता है। इसीलिए पतंजलि सीधे-सीधे आत्म-साधना की बात नहीं करते। वे सबसे पहले शरीर को साधन बनाना चाहते हैं,शरीर को स्वस्थ कर लेना चाहते हैं।
यूँ तो कहा जाता है कि - शरीरं व्याधि मंदिरम्। लेकिन यह भी कहा जाता है कि- शरीरं खलु धर्म साधनं- शरीर ही धर्म का साधन है। माना कि शरीर रोगों का घर होगा लेकिन यह बात उन कायरों, नपुंसकों और कमज़ोर लोगों के लिए है जो अपने शरीर को निरोगी और आरोग्यमय बनाना नहीं जानते। कहते हैं न् - पहला सुख निरोगी काया, लेकिन यह कहने भर से शरीर निरोगी नहीं होगा। इसके लिए बाकायदा प्रयास करने होंगे। हमें स्मरण रखना चाहिए कि केवल अच्छे खान-पान से ही व्यक्ति स्वस्थ नहीं होता, इसके लिए योगाभ्यास भी करना होगा, व्यायाम करना होगा। अपने शरीर को इतना निरोगी बनाना होगा कि यह व्याधि का घर नहीं
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