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न हो पाएगा ।
यम के संबंध में हम चर्चा कर चुके हैं, फिर भी संक्षेप में मानसिक, वाचिक और कायिक हिंसा पर सम्यक् प्रकार से अंकुश लगाना ही यम है, संयम है। यम के अंतर्गत हमने अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जाना। जब हम इन पाँच तत्त्वों पर चर्चा करते हैं, तो यह बात भलीभाँति समझ में आ जाती है कि भले ही महावीर का धर्म जैन धर्म कहलाता हो, बुद्ध का मार्ग बौद्ध धर्म कहलाता हो और पतंजलि का दिशाबोध सनातन धर्म कहलाता हो, पर सचाई यही है कि इन सभी धर्मों का नवनीत और प्रथम द्वार ये पाँच यम या पाँच व्रत हैं। सबका दर्शनशास्त्र अलग हो सकता है, लेकिन नैतिक और जीवन-मूल्य दुनिया के प्रत्येक धर्म के समान हैं । दुनिया को छोड़ भी दें तो ये तीनों परम्परा एक ही धरातल पर खड़ी हैं। उनके अनुसार चाहे योग की साधना हो, धर्म की साधना हो या जीवन और नैतिक मूल्यों की साधना करनी हो पाँच यम चाहिए, पाँच संयम, पाँच व्रत, पाँच शील चाहिए । शब्द अलग-अलग हैं, नाम उपनाम अलग-अलग, संज्ञाएँ अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन मार्ग ढूँढने के लिए तीनों महापुरुषों को इसके अलावा कोई रास्ता नहीं मिला। उन्हें लगा कि अहिंसा कहते ही उसमें सेवा, करुणा, दया, प्रेम सब कुछ समाहित हो जाते हैं। सत्य कहते ही शिवम् और सौन्दर्य की अपने-आप स्थापना हो जाती है । अस्तेय (अचौर्य) से व्यक्ति के साथ उसकी प्रामाणिकता और ईमान जुड़ जाता है। ब्रह्मचर्य से एक-दूसरे के प्रति पवित्रता स्थापित हो जाती है और अपरिग्रह के साथ सामाजिक वात्सल्य, सामाजिक सहभागिता, सामाजिक समरसता अपने आप आ जाती है। अब इन्हें पंचव्रत, पाँच यम या पंच शील कहें कोई फ़र्क नहीं पड़ता है ।
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ये पाँच यम एक तरह से भारतीय संस्कृति के पाँच पायदान हैं। पाँच यम- व्रत यानी भारत का मानवजाति के नाम उनके कल्याण का पथ । यह तो पंचामृत है जिसे भारत के द्वारा संपूर्ण दुनिया में प्रचारित-प्रसारित किया ही जाना चाहिए। अगर किसी देश में गरीबी बढ़ गई है, किसी देश में भ्रष्टाचार फैल गया है, अगर किसी देश में सेक्स, राजनीति, व्यसन बेशुमार बढ़ते जा रहे हैं, यदि कहीं डाके और चोरी, लूटखसोट बढ़ गई हो, किसी भी रूप में अनैतिकताएँ स्थापित हो गई हों तो भारत के द्वारा पूरी विश्व-संस्कृति को एक ही संदेश होना चाहिए कि सभी इन पाँच तत्त्वों को पाँच यम, पाँच व्रत, पाँच शीलों को अपनाएँ ।
प्रथम है अहिंसा | अहिंसा को मन, वचन और काया इन तीनों तलों पर जीना होगा। सार रूप में, मानसिक हिंसा पर अंकुश लगाने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण
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