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योग के पाँच नैतिक मूल्य
मेरे प्रिय आत्मन्!
महर्षि पतंजलि, भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के द्वारा मानव-समाज के कल्याण के लिए जितने संदेश और उपदेश दिए गए वे अपने समय में जितने सार्थक थे उससे कहीं अधिक उपयोगिता वर्तमान में है। प्राचीन समय में भी भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के प्रसंग देखने को मिलते हैं। कंस और रावण के अत्याचार अतीत के प्रसंगों में पढ़ने को मिलते हैं लेकिन आज का युग भी उन बुराइयों से अछूता नहीं है। इसी कारण उस समय उनके संदेशों-उपदेशों की जितनी उपयोगिता थी आज उनकी उपयोगिता उससे भी ज़्यादा है। महर्षि पतंजलि योगसूत्रों का प्रतिपादन करते हुए सर्वप्रथम यम अर्थात् अंकुश का उल्लेख करते हैं। यम के पालन का प्रथम और अंतिम उद्देश्य यही है कि व्यक्ति अपने जीवन में नैतिक और जीवन-मूल्यों को आत्मसात् करे। कोई व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो जाए, समाधि की ऊँचाइयों को क्यों न छ ले, बौद्धिकता कितनी भी समद्ध क्यों न हो जाए, पर उसके पास चरित्र की ज्योति, ईमान की सुवास और नैतिक मूल्यों की जीवंतता नहीं है, तो वह संस्कारविहीन इंसान बन जाएगा। उसे इंसानों के साथ सद्व्यवहार करने का बोध ही
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