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निकृष्ट हिंसा है। हमें जाति, मत, मज़हब - इन सबको भुलाकर अहिंसा को बल देना चाहिए। हमारे देश में सभी वणिक लोग अहिंसक हैं। हमें अपनी ताक़त, धन, जलसों और शोभायात्राओं पर नहीं, अहिंसा के लिए समर्पित करना चाहिए ।
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आप जानते हैं जैन मुनि पैदल क्यों चलते हैं? आज हवाई जहाज़ और रॉकेट युग में भी वे पैदल चल रहे हैं। क्यों? क्योंकि वे चाहते हैं उनके द्वारा सूक्ष्म-सेसूक्ष्म हिंसा भी न हो । चलते हुए अगर एक चींटी को भी बचा सकते हैं तो बचाना चाहिए। आपको पता है भगवान बुद्ध जिस करवट सोते थे सुबह उसी करवट में उठते थे। क्यों? क्योंकि करवट बदलने पर जीव हिंसा की संभावना थी। इतनी करुणा ! जो संत या मुनि पैदल नहीं चल सकते और डोली में बैठकर चलते हैं, यह अहिंसा नहीं है । चार लोगों के कंधे पर चलना अहिंसा को ढोना है, परम्परा का आग्रह और दुराग्रह है। इससे तो बेहतर है वाहन का उपयोग कर लिया जाए उसमें कम हिंसा होगी ।
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अहिंसा का जितना अधिक पालन किया जाए उतना ही अच्छा है । अहिंसा कोई ज़बर्दस्ती नहीं है । यह तो जीवन जीने की शैली है। दुनिया अहिंसा पर टिकी है। इसे हिंसा पर नहीं टिकाया जा सकता। आतंक में, उग्रता में जीने वालों की संख्या पाँच प्रतिशत है लेकिन अहिंसा में निष्ठा, विश्वास रखने वालों की संख्या पिच्चानवे प्रतिशत है । अगर यह क्रम उल्टा हो गया तो धरती समाप्त हो जाएगी। आज भी दुनिया में अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग हैं। भले ही सभी लोग धार्मिक न हों, पर अहिंसा के प्रति आज भी लोगों की आस्था है । अहिंसा के प्रति आस्था होना वास्तव में धर्म का ही आचरण है, धार्मिकता है ।
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मानसिक, वाचिक, कायिक हिंसा न हो इसके लिए याद रखें - सकारात्मक सोच, विनम्र प्रस्तुति, विनम्र भाषा और जागरूकता के साथ दैहिक गतिविधियों का संपादन। अहिंसा केवल शब्द नहीं है यह जीने की शैली, जीवन का पाठ है। यह संपूर्ण पृथ्वी ग्रह की माँ है। जब तक धरती पर अहिंसा रहेगी तब तक आपसी प्रेम रहेगा, इंसान आपस में एक-दूसरे के काम आएँगे । अहिंसा से ही शांति है, प्रेम है, भाईचारा है, एक-दूसरे के लिए शहादत की सद्भावना है। जिस दिन अहिंसा धरती पर नहीं रहेगी उस दिन धरती कंगाल हो जाएगी। व्यक्ति आदिम युग में चला जाएगा और लोग अन्न के एक कण के लिए भी आपस में भिड़ जाएँगे। आज का युग प्रगति और समृद्धि का है । यह हिंसा का युग नहीं है । यह अहिंसा और प्रेम का युग है । हमें युग के निर्माण के लिए अहिंसा का स्वागत करना चाहिए, अहिंसा को बढ़ावा देना
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