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और योगी बन जाए । अभ्यास और अनासक्ति के साथ किया योग निश्चित ही परिणाम प्रदान करेगा। योग के आकाश में उड़ने के लिए अभ्यास और वैराग्य (अनासक्ति) के दो पंख होना आवश्यक हैं। जो भी योग में स्वयं से मुखातिब होगा उसे सबसे पहले अपने चित्त के क्लेश अनुभव में आएँगे। ये क्लेश अन्य कुछ नहीं हमारे चित्त के अंधेरे हैं- अज्ञान के, अहंकार के, राग-द्वेष और भय के ।
श्रमण भगवान महावीर ने भी मनुष्य के मन को समझा और लेश्या का विज्ञान दिया। उन्होंने कृष्ण, नील, कापोत, तेजोलेश्या, पद्म और शुक्ल लेश्याएँ बताईं । लेश्या वह जो इंसान के चित्त को घेर ले। उसके मन, वाणी और काया की प्रवृत्तियों को जो घेर ले वही लेश्या है । आप देखें क्लेश और वृत्तियाँ भी वही हैं जो हमारी आत्मा और चेतना को अपने अंधेरे में घेर लेती हैं। योग क्या है? अंधकार में प्रकाश की पहल । हर किसी के जीवन में काँटे तभी तक होते हैं, जब तक फूल न खिल जाएँ। फूलों के खिलते ही काँटों का वज़ूद कम हो जाता है। जैसे ही हमारे भीतर योग का कमल खिलता है, उसकी ऊर्जा, उसका स्वास्थ्य, माधुर्य और आनन्द हमें मिल जाता है । जब योग हमें हमारी शांति, प्रसन्नता, प्रज्ञा और समाधि उपलब्ध करवा देता है, तब क्रोध की, वासना की, द्वेष या मोहमाया की अग्नि अपने आप समाप्त हो जाती है । अंधेरे हैं, रहेंगे भी, घेरेंगे भी, लेकिन इनसे निजात पाने के लिए मंदिर जाना, संतों का समागम करना, सामायिक प्रतिक्रमण या आराधना करना एकमात्र उपाय नहीं है। इससे भ्रम हो सकता है कि आपने धर्म कर लिया, पर नहीं; यह धर्म नहीं है । इससे हमारे अंधेरे कटने- छँटने वाले नहीं है। माना कि अंधेरे कट-छँट जाते तो जब इंसान मंदिर से निकलता है या अन्य कोई धर्म - साधना-आराधना करता है तब भी उसके जीवन में शांति क्यों नहीं आती? क्यों वह क्रोध, वासना से घिरा रहता है। वह व्यापार में छल-प्रपंच क्यों करता है? परिवार, समाज के मध्य प्रेम से क्यों नहीं रहता? अंधेरे तो हैं, रहेंगे, घेरेंगे हम भले ही हरि नाम का तिलक लगा लें । अंधेरे तो बिन बुलाए मेहमान की तरह हमारे पास आ जाएँगे ।
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जिस दिन हम अपने अन्तर्मन में, अन्तर्घट में प्रकाश उतार लेते हैं, तब अंधेरे भी चुपचाप लौटकर चले जाते हैं। योग जोड़ता है स्वयं से । क्लेश नहीं जोड़ता है । क्लेश दूसरों से जोड़कर दुःखी करता है। योग तो शुद्ध रूप से हमारी वृत्तियों को काटता है और हमारे भीतर प्रकाश की पहल करता है। मैंने जहाँ तक योग को जाना, समझा और जिया, यही पाया कि योग व्यक्ति के भीतर और बाहर की दोहरी जिंदगी को मिटा देता है। जीवन में सहज ही प्रामाणिकता ले आता है, सच्चा चारित्र प्रदान करता है । ज्यों-ज्यों हम योग की गंगा में अवगाहन करते हैं त्यों-त्यों यह हमें निर्मल
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