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रेखा है। जब उसने मुझे ऐसा कहा तो मुझे तुम्हारी याद आ गई और तुम्हें ढूँढता हुआ यहाँ तक आ गया। जैसे ही उस महिला ने यह बात सुनी, तत्काल दरवाजा बंद करते हुए बोली - तुम्हारे हाथ में दो पत्नियों के योग हो सकते हैं लेकिन मेरे हाथ में तो एक ही पति का योग है ।
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मेरी दृष्टि में यही यम और संयम है। अगर यह लगाम लग जाए तभी योग सार्थक है। जीवन में यम-संयम को न अपना सके तो आगे की बातें ; ध्यान, धारणा, समाधि, उल्टी पड़ सकती हैं। ध्यान तो रावण ने भी किया था, पर परिणाम क्या चाहा • राम का विनाश। राम ध्यान साधकर रावण के लिए सद्बुद्धि ही चाहेंगे। स्वयं में सद्बुद्धि होने पर ही दूसरों की सद्बुद्धि के लिए कामना और प्रार्थना कर सकेंगे; अन्यथा दुर्बुद्धि होने पर दुर्योग ही लगाएँगे और वैसे ही परिणाम भी चाहेंगे। इसलिए पतंजलि सबसे पहले यम की बात करते हैं। पहले व्यक्ति का जीवन नैतिक बने, जीवन-मूल्य आत्मसात हों। किसी भी धार्मिक कृत्य को करने की पहले पात्रता होनी चाहिए तब वह कृत्य किया जाए। उसकी पात्रता तभी मिलती है जब व्यक्ति व्रतों को स्वीकारता है । जीवन-मूल्य और नैतिक मूल्यों के बिना आप मंदिर में चाहे चले जाएँ लेकिन मंदिर से लौटते ही उसी छल-प्रपंच के जाल में उलझ जाएँगे । सामायिक भले ही दो-तीन कर लें, पर समता न आने से सामायिक पूर्ण होते ही फिर से वही कपट शुरू हो जाता है । उसी क्रोध, काम और वासना के प्रपंच में लौट जाएँगे। ये अंधेरे बार-बार घेरते रहेंगे। मात्र दिवाली मनाने से कुछ नहीं होता, पहले भी अंधेरे थे, रहेंगे, घेरेंगे। ये हमें उलझाएँगे, तड़फाएँगे, तब तक जब तक कि हमारे अंतस में प्रकाश उदित नहीं हो जाता । अन्तर्घट प्रकाशित नहीं हो जाता ।
मैं इस बात पर ज़ोर देकर इसलिए कह रहा हूँ कि आगे बढ़ने से पहले नैतिक होना ज़रूरी है । संयममय होना ज़रूरी है । आजकल लोग योगासन कर रहे हैं, प्राणायाम सीख रहे हैं, लेकिन नैतिक मूल्य उनके जीवन के साथ नहीं हैं। योगासन ख़ूब किए जा रहे हैं, पर उसका संबंध अध्यात्म के साथ नहीं है, प्रभु के साथ नहीं है, ऋतम्भरा प्रज्ञा के साथ नहीं है । उसका संबंध केवल रोग को काटने से है, इस नश्वर काया को स्वस्थ बनाने से है। जबकि पतंजलि कहते हैं आसन करने से पूर्व व्यक्ति का नैतिक होना ज़रूरी है । इसीलिए यम देते हुए उसकी व्याख्या करते हैं कि अहिंसा-सत्य-अस्तेय-ब्रह्मचर्य - अपरिग्रहा यमाः । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करना यम है । इन पाँच तत्त्वों का जीवन में अनुशीलन करना, उनका पालन ही यम है। महावीर ने भी पाँच अणुव्रत या महाव्रत कहे जिनमें
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