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कहते हैं जब विवेकानन्द विदेश में थे तब एक युवती इतनी प्रभावित हुई कि उनसे प्रणय का अनुरोध कर दिया। भोग-उपभोग का आमंत्रण दे दिया। विवेकानंद के लिए ये क्षण कसौटी के थे। विवेकानंद ने पूछा - तुम मुझसे यह सब क्यों करना चाहती हो? युवती ने कहा- मैं आप जैसे ज्ञानी, बलिष्ठ और सुन्दर पुत्र की माँ बनना चाहती हूँ। विवेकानंद ने संयमपूर्वक कहा- माता, अगर तुम केवल मेरे जैसा पुत्र ही चाहती हो तो बेहतर है कि तुम मुझे ही अपना पुत्र मान लो। यही है यम। हो सकता है मन विचलित हो जाए,लेकिन विचलित होते मन पर तत्काल अपने ज्ञान और विवेक का अंकुश लगा लेना ही यम और संयम है।
__एक पुरानी कहानी बताती है कि - कल्याणनगर को जीतने के बाद जब शिवाजी के सामने वहाँ की बेगम उपस्थित की जाती है और मराठा सैनिक कहते हैं कि वे उनके लिए अनमोल तोहफ़ा लाए हैं। एक शिविका में से बेगम उतरी हैं। उसके अनुपम सौंदर्य को देखकर क्षणभर के लिए शिवाजी भी चकित हो जाते हैं, लेकिन तत्काल स्वयं पर अंकुश लगाते हुए कहते हैं - सचमुच बेगम! आप बहुत खूबसूरत हैं। यदि मेरा पुनर्जन्म हो तो मेरी माँ आप जैसी ही अत्यन्त सुंदर हों ताकि शिवा भी अगले जन्म में आप जितना सुंदर हो सके।यह है यम-संयम।
___ कहानी में असंबद्धता हो सकती है, लेकिन कहानी महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण है उनसे मिलने वाली प्रेरणाएँ। कहानियों से जो प्रकाश और प्रेरणा मिलती है वह महत्त्वपूर्ण है। एक और घटना याद आ रही है - किसी खिलाड़ी को विदेश में खेलते हए किसी लडकी से प्रेम हो गया। वे साथ रहने लगे। समय बीतने पर वह खिलाड़ी अपने देश लौट गया। धीरे-धीरे वह लड़की उसे विस्मृत हो गई। उसने अपना परिवार बसा लिया। अचानक एक दिन किसी ज्योतिषी ने उसका हाथ देखा और कहा- तुम्हें दो पत्नी के योग हैं। उसने बताया कि उसके तो एक ही पत्नी है और उसके बच्चे भी हैं। लेकिन ज्योतिषी अपनी बात पर अडिग रहा। तब उसकी धुंधली पड़ चुकी यादों में उस लड़की का चेहरा चमक उठा जिसे कभी उसने प्रेम किया था। वह चल पड़ा उसे ढूँढने। उसी देश में जा पहुँचा, स्मृतियों के सहारे उसका घर भी ढूँढ लिया और दरवाजे पर उसी का नाम पढ़कर घंटी बजा दी। एक महिला ने; जिसके साथ बच्चा भी था, दरवाजा खोला। उसे विस्मय हुआ कि वह शायद उसे लेने वापस आ गया है। उसने पूछा - कैसे याद आई? तब उस खिलाड़ी ने कहा - कुछ समय पूर्व मुझे एक ज्योतिषी ने बताया कि मेरे हाथ में दो पत्नियों की
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