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आत्मा की शक्ति आगे बढ़ती है।
आज हम योग के आठ चरणों की चर्चा करेंगे जो हमारी नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने में हमारी मदद करते हैं। ये आठ चरण अष्टसिद्धिदायक हैं। ये चरण हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यह अष्टांग योग जीवन में अष्ट मंगल के समान हैं, मानसरोवर में खिले अष्टकमल के समान महत्त्वपूर्ण हैं । संपूर्ण संसार में, पतंजलि के इन आठ सूत्रों को सम्मान मिला है। भारत की संस्कृति में तो जितनी भी अध्यात्म की बातें हुई हैं किसी-न-किसी रूप में योग के ये आठ अंग अवश्य जुड़े हैं। भगवान महावीर
और बुद्ध पर भी योग के इन अंगों का प्रभाव रहा, पर धीरे-धीरे साधना करते हुए उनकी स्वयं की सहजता उपलब्ध होती गई और आरोपित विधियाँ, शास्त्रों के द्वारा निरूपित प्रक्रियाएँ अपने आप घटती गईं और स्वयं के भीतर प्रकाश उपलब्ध करते गए। ज्यों-ज्यों अन्तस प्रकाशित होता है, त्यों-त्यों अंधेरे घटते जाते हैं। कमल के खिलने से दलदल निस्तेज होता जाता है। गुलाब के खिलने से काँटे अस्पर्शित रह जाते हैं, नीचे रह जाते हैं।
इन अष्ट अंगों पर साधकों को क्रमश: एक-एक कर चढना होगा, इन्हें साधना होगा। एक साथ सारे चरण नहीं सधेगे। एक-एक चरण को जब हम साधेगे तब धीरे-धीरे उनमें परिपक्वता आएगी। पहली कक्षा में परिपक्व होने पर ही दूसरी कक्षा में जा सकते हैं। अगर सीधे ही छठी-सातवीं कक्षा में चले गए तो बहुत-सी कठिनाइयाँ उपस्थित होंगी और श्रम भी बहुत ज़्यादा करना होगा। जैसे पतंजलि ने अष्टांग दिए उसी तरह भगवान बुद्ध के द्वारा प्रणीत मध्यम मार्ग के भी आठ ही चरण हैं। भगवान बुद्ध द्वारा आठ चरणों का प्रतिपादन भी स्पष्ट संकेत है कि उन्होंने भी योग के इन आठ अंगों से किसी-न-किसी रूप में प्रेरणा अवश्य ली है। बुद्ध के आठ आर्य मार्ग हैं - सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि।
योग के आठ अंगों में प्रथम है - यम। यम शब्द का अर्थ है - अंकुश। महावीर जिसे 'व्रत' कहते हैं, पतंजलि उसे 'यम' और बुद्ध 'शील' कहते हैं। आज के समय में 'यम' अधिक प्रचलित शब्द नहीं है जो प्रचलित है वह है - संयम। संयम का अर्थ है - सम्यक् प्रकार से अपने-आप पर अंकुश लगाना। अपनी गतिविधियों पर, अपनी प्रवृत्तियों, वृत्तियों पर अंकुश लगाना ही संयम है। जैसे हाथी को वश में करना हो तो अंकुश चाहिए या घोड़े पर काबू पाना हो तो लगाम चाहिए वैसे ही मानव-जीवन में यम की, व्रत की, शील की, संयम की आवश्यकता होती
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