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जिए। ___मेरी शांति का राज ही सहजता है। मैं आसक्ति के दलदल में नहीं हूँ।सबसे प्रेम है, पर किसी से आसक्ति नहीं है। आसक्ति दुःख देती है। प्रेम ईश्वर के क़रीब ले जाता है। मन को आसक्तिमय नहीं, प्रेममय बनाएँ।आसक्ति में एक अपना होता है। एक पराया।प्रेम में कोई पराया होता ही नहीं है।
एक संत हुए हैं - इनायत शाह क़ादरी,सूफी परम्परा के संत हुए हैं और उनके शिष्य हुए हैं बुल्लेशाह,यह तब की कहानी है जबबुल्लेशाह संत नहीं हुए थे। कहते हैं फ़क़ीर क़ादरी अपने बगीचे की रखवाली कर रहे थे उसमें ढेरों आम्रवृक्ष लगे हुए थे। तभी एक नवयुवक वहाँ आया और फ़क़ीर साहब का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने लगा। फ़क़ीर अपनी मस्ती में थे उनका ध्यान नहीं गया। युवक ने फिर से ध्यान खींचना चाहा, फिर भी उन्होंने उस ओर नहीं देखा। तब युवक ने ऊपर की ओर नज़र उठाई और कहा- बिस्मिल्लाह ।और फ़क़ीर ने देखा कि पके हुए आम ख़ुद-ब-ख़ुद नीचे ज़मीन पर गिर पड़े।
इनायत क़ादरी ने देखा और सोचा कि इस युवक के बिस्मिल्लाह कहते ही आम नीचे गिर गए हैं ज़रूर यह नौजवान कुछ ख़ास है, इसमें कुछ दम है। उन्होंने अपनी नज़र उठाते हुए कहा- कौन है? वह युवक खुश हो गया कि आख़िरकार वह संत इनायत क़ादरी साहब का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल हो गया। वह दौड़कर उनके पास पहुंचा और कदमों में हाज़िर हो गया। पूछा - क्या चाहते हो, तुम्हारी क्या समस्या है। बुल्ला ने कहा- साहिब, मैं तो रब को पाने के लिए आपकी ख़िदमत में आया हूँ- यह कहते हुए वह उनके पाँवों में गिर पड़ा।संत ने उसे संबोधित करते हुए कहा - बुल्ले, अगर रब को पाना है तो नीचे नहीं, ऊपर उठ। उसे आध्यात्मिक नज़रों से देखते हुए संत साहिब कहते हैं - रब को क्या पाना, रब को पाना है तो इधर से उखाड़ और उधर को लगा।इतना कहकर फ़क़ीर तो वहाँ से चले गए।और बुल्लेशाह भी फ़क़ीर बन गये उन्होंने भी जीवन भर सभी को एक ही संदेश दिया- अगर तूरब को पाना चाहता है तो इधर से उखाड़ और उधर को लगा।
योग की समाधि को उपलब्ध करने के लिए भी मैं यही सूत्र उद्धृत करूँगा; यदि हम योग में प्रवृत्त होना चाहते हैं, परमात्मा की ओर दो कदम बढ़ाना चाहते हैं, तो इधर से उखाड़ और उधर लगा। जगत में, मोह-माया में, राग-द्वेष में जो हमारा मन फँसा हुआ है उसे यहाँ से उखाड़ और प्रभु की ओर लगा। हम इसीलिए भटक रहे हैं क्योंकि उधर तो लगना चाहते हैं, पर इधर से उखड़ना नहीं चाहते। इधर से
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