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पलने वाली ग्रंथि का नाम ही द्वेष है। द्वेष से ही भय और डर पैदा होता है। द्वेष ही तनाव का जनक है। इससे मनोविकार बढ़ते हैं, ईर्ष्या का, प्रतिस्पर्धा का जन्म होता है। प्रतिक्रियाएँ, उग्रताएँ आती हैं, क्रोध होता है। राग से कामवासना बढ़ती है तो द्वेष ईष्या, वैर-वैमनस्य, दुःख-दौर्मनस्य को जन्म देता है। मैंने वर्षों पहले जो साधना की वह वीतद्वेष होने की थी। मैंने अपने को देखा, चित्त की दशाओं को, जीवन-शैली को परखा और जाना कि मेरे लिए वीतराग हो पाना फिलहाल संभव नहीं हो रहा है। मैं अपनी अंतरदशा को, मन को वीतराग होने के स्तर पर नहीं देख पा रहा हूँ तो वर्षोंवर्ष पहले यह संकल्प लिया कि मैं स्वयं को वीतद्वेष बनाऊँगा। संसार के किसी भी प्राणी के प्रति अपनी ओर से द्वेष, वैर-वैमनस्य के भाव किसी भी स्थिति में नहीं आने दूंगा। मेरे चित्त की प्रसन्नता, शांति, सहजता में किसी ने मूलरूप से मदद की तो वह है वीतद्वेष होने का संकल्प।किसी के प्रति भी वैर-विरोध नहीं।
भगवान महावीर ने बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया है - खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमन्तु मे, मित्ती मे सव्व भूएसु वैरं मज्झं न केणई । द्वेषभाव को मिटाने के लिए यह अमृत सूत्र है - खामेमि सव्व जीवे - मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ, सव्वे जीवा खमंतु मे - संसार के सारे प्राणी मुझे भी क्षमा करें। मित्ती मे सव्व भूएसु - मैं संसार के समस्त प्राणियों का मित्र हूँ। वैरं मझं न केणई - मेरा किसी के प्रति किंचित भी वैर-विराध नहीं है।
किसी के प्रति वैर-विरोध, वैमनस्य आ भी जाए तो तत्काल अपने मन को संभालो, सुधारो, सहेजो। जैसे कि कृष्ण ने सुभद्रा से कहा था कि वह ठीक से अपने मन को नहीं समझा पाई वैसे ही जानो कि तुम भी ठीक से अपने मन को नहीं समझ पाए, नहीं समझा पाए इसीलिए ये वैर-विरोध की भावनाएँ उठ गईं। जैसे ही महसूस हो कि आपसे गलती हो गई तत्काल सॉरी कह दें। सॉरी कहने में संकोच मत खाओ। प्रतीक्षा मत करो कि दूसरा आपके आगे झुके तब आप सॉरी कहें। महत्त्व आपका है क्योंकि वीतद्वेष होने का संकल्प आपने लिया है, न कि उसने। इसलिए अपनी गलती स्वीकार कर लो, उसको उपहास मत बनाओ। दूसरे को अहसास हो जाए कि सचमुच आप अपनी ग़लती मान रहे हैं। ___ ग़लती मानते ही मैटर फिनिश हो जाता है। मुँह सुजाए, मुँह चढ़ाए कब तक बैठे रहोगे। ऐसे तो आक्रोश और बढ़ता जाएगा। हम अधिक देर तक टेंशन में रहेंगे। टेंशन को जितनी जल्दी हटाओगे, उतनी ही समझदारी है। नहीं तो तुम जलते रहोगे, दिल जलता रहेगा। ख़ुद को भट्टी बनाना भला कोई बुद्धिमानी की बात है? इसलिए
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