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विष्णु क्रोधित नहीं हुए। उल्टा, भृगु ऋषि के पाँव दबाने लगे और टिप्पणी की ऋषिवर! आपके पाँव में चोट तो नहीं लगी?
और तब से मशहूर हो गया 'कहा विष्णु को घटि गयो जो भृगु मारी लात ' । अगर किसी ने अपमान भी कर दिया तो अपना क्या बिगड़ा । विष्णु की शांति और क्षमा ने ही विष्णु को पूज्य बनाया ।
दुनिया में जीसस की पूजा क्यों की जाती है ? महावीर क्यों पूजे जाते हैं क्योंकि उन्होंने सूली पर चढ़ाने वालों को, कानों में कीलें ठोंकने वालों को भी क्षमा कर दिया था। तभी तो हम उन्हें आज भी याद करते हैं । हमें विश्वमित्र होना चाहिए न कि विश्वशत्रु । सर्वे भवंतु सुखिन:- सभी सुखी हों हमारे कारण किसी को भी ठेस और कष्ट न पहुँचे। यह वीतद्वेष की साधना है। इसे जीने के लिए जीवन में प्रेम, शांति और क्षमा को महत्त्व देना होगा। गौतम बुद्ध कहते हैं - न ही वैरेण वैराणि सम्मन्तिध कुदाचन, अवैरेण च सम्मन्ति एस धम्मो सनंतनो' - वैर कभी भी वैर से शांत नहीं होता - प्रेम शांति और क्षमा से ही वैर शांत होगा, यही सनातन धर्म है ।
आज कोई शक्तिशाली है तो तुम पर बल प्रयोग करता है, कल तुम शक्तिवान होकर उसे अपने बल के अधीन बना सकते हो। यह जन्मों-जन्मों का चक्र है जो कमठ और पार्श्वनाथ की तरह चल सकता है। आज के युग में भी देखा जा सकता है कि सत्तासीन विपक्ष का नानाविध विरोध / दमन करता है, कल जब विपक्ष सत्तासीन हो जाता है तो वह बदले निकालता है। प्रकृति का धर्म ही परिवर्तनशीलता है । कभी पहिया ऊपर और कभी नीचे होता है। यह उतार-चढ़ाव तो चलता ही रहता है ।
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महर्षि पतंजलि कहते हैं ये उतार-चढ़ाव तो चलने ही वाले हैं, लेकिन जो योग में प्रवृत्त हो जाएँगे वे चित्त के क्लेश और संक्लेशों में और हर विपरीत परिस्थिति में भी सहजता से जिएँगे और आनन्दित रहेंगे। हानि-लाभ, जीवन-मरण, यशअपयश - ये सब चलते रहेंगे लेकिन योग-साधना अपनाने चित्त के क्लेश- संक्लेशों से आवृत्त नहीं होगा वरन सहजता और आनन्द का परिचय देगा । वह अपने को उद्वेलित नहीं करेगा। वह क्रोध, काम, वासना के अंधे प्रवाह में नहीं बहता, वह जागरूकता के साथ जीता है। वह निश्चितता और आनन्दभाव से जीता है। वह मृत्यु के भय से भयभीत नहीं होता है। जो मृत्यु-भय से भयभीत हो जाएगा वह नचिकेता कैसे बन पाएगा। डरपोक मृत्यु से घबराते हैं और जिसने विजय प्राप्त कर ली वे नचिकेता बनकर मृत्यु का सामना करने के लिए खुद प्रस्तुत हो जाते हैं। आत्म- -ज्ञान हँसी खेल नहीं है, न ही कोई पुड़िया है जिसको फाँका जा सके। आत्म-ज्ञान उन्हें ही
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