________________
दोनों ही घातक साबित होते हैं । काँटे से काँटे को निकालकर दोनों को ही फैंक देना श्रेयस्कर है। घूप में खड़े रहने से बेहतर छाया में खड़े रहना है, लेकिन घर लौटने के लिए छाया का मोह भी त्यागना होता है । राग हमें पास में खींचता है और द्वेष परे धकेलता है। राग से चिंता पैदा होती है और द्वेष से भय का जन्म होता है । किसी व्यक्ति के भीतर चिंता, तनाव, ईर्ष्या, भय आदि मानसिक आवेग, मानसिक रोग हैं, तो उसे स्वस्थ, प्रसन्न और सफल कैसे कहेंगे? क्लेश- संक्लेश इसीलिए हटाए जा रहे हैं कि व्यक्ति चिंताओं से न घिरे, भय से बोझिल न हो, ईर्ष्या के भँवरजाल में न उलझे ।
राग चिंता का मूल है। एक बच्चा अगर माँ से कहकर जाए कि वह अमुक समय पर वापस आ जाएगा और किसी कारणवश न आ सके तो माँ उसकी मंगलकामना नहीं करती, बल्कि विभिन्न अशुभ विचार चित्त को कष्ट देने लगते हैं, चित्त में अशांति और अस्थिरता आ जाती है । राग और मोह की वज़ह से हमारे भीतर चिंताएँ पैदा होती हैं। लेकिन सोचें यही घटना पड़ोस में घटती है तो क्या हमें चिंता होती है? नहीं क्योंकि वह पड़ोस का बच्चा है हम उसकी फ़िक्र नहीं लेते। राग चिंता का केन्द्र-बिंदु है इसलिए हमें अपना जीवन सहजता से जीना चाहिए - न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर - सबके साथ कर्त्तव्य पालन करते हुए जीवन जिएँ । राग-द्वेष को समाप्त करने का सबसे सरल तरीका यही है कि अपना जीवन सहजता से जिओ । आरोपित या प्रदर्शित जीवन से बचो ।
--
किसी महानुभाव ने मुझसे पूछा - सुख किससे मिलता है? मैंने कहा- शांति से इन्सान को सुख मिलता है । पुन: पूछा - शांति किससे मिलती है । मैंने जवाब दिया- राग और द्वेष इन दो तत्त्वों को छोड़ने से चित्त में स्थिरता आती है। पूछा गया - राग और द्वेष कैसे छूटते हैं। मैंने कहा - अनासक्ति से छूटते हैं । बोले- अनासक्ति कैसे घटित हो सकती है? मैंने कहा- सहजता से । सहजता वह सरल साधन है जो हमें चिंता और तनावों से मुक्त करता है ।
सहज मिले सो दूध सम, माँगा मिले सो पानी । कहत कबीर वह रक्त सम, जामें खींचा-तानी ॥
जो सहजता से मिल जाए वह श्रेष्ठ है और जिसमें खींचतान हो, क्लेश हो वह रक्त के समान कष्टकारी हो जाती है । हमें अपना जीवन सहजता से जीने की आदत डालनी चाहिए।
हम अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ देखेंगे कि राग-द्वेष
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
| 85
www.jainelibrary.org