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मुक्त कर दो ताकि यह उच्चतम गति को प्राप्त कर ले अन्यथा ममता के बंधन के कारण यह पुनः तुम्हारी ही कोख से जन्म लेने को विवश हो जाएगा।
चित्त के क्लेश और संक्लेश इसीलिए हमारे द्वारा दूर कर दिए जाने चाहिए और मन को प्रशिक्षित कर लेना चाहिए। अन्यथा ऐसा न हो कि द्रोपदी द्वारा सुकुमालिका के भव में यह भाव किये जाते हैं कि वह भी पाँच पतियों के साथ आमोद-प्रमोद करे और अगले जन्म में यह घटित हो जाए। इसलिए हमारे मन के क्लेश और संक्लेश नियंत्रित रहें अन्यथा जन्म-जन्मांतर तक ये हमारे साथ चलते रहेंगे! भारभूत बने रहेंगे। हमें ध्यान रखना चाहिए कि मन हमारे जीवन की बहुत बड़ी शक्ति है। हमारा मन जो चंचल और भटकता हुआ कहलाता है - इसके लिए गीता कहती है - अगर यह मन स्थिर हो जाए तो प्रभु के साक्षात्कार में भी सहायक हो जाता है। मन में उत्साह व उमंग होने पर वह दुष्कर कार्य भी सहजता से संपादित कर लेता है। सारा खेल मन का है।
__ मन एक शक्ति है । यह उस हथौड़ी की तरह है जो माईकल एंजलो के हाथ में जाए तो सुंदर मूर्ति का निर्माण कर देती है और सेंधमार के हाथ में पड़ने पर मूर्ति को तोड़ डालेगी, आतंकवादी के हाथ में पड़कर हत्या का सबब बन जाएगी। शक्ति तो वही है उपयोग करने वाले पर निर्भर है कि वह कलाकार है, सेंधमार है या किसी अपराधी प्रवृत्ति का है। जैसी हमारी मनोवृत्ति, चित्तवत्ति होगी जीवन में मिलने वाले समस्त साधनों का वैसा उपयोग करेंगे। इसीलिए गुरु की भी आवश्यकता है ताकि उसके चरणों में बैठ कर हम अपने मन को नहला सकें, गंगास्नान करवा सकें, मन को प्रशिक्षित करें। हमारा मन जो मदमस्त साँड की तरह उछलता-कूदता रहता है उस पर अनुशासन का अंकुश लग सके। भटकता हुआ मन क्रोध और वासना की अग्नि में जला हुआ मन सही, स्वस्थ, सकारात्मक, आनन्द पूर्ण बन सके, हमारी समाधि, मुक्ति में यह सहायक बन सके, इसीलिए गुरु, ज्ञान, शास्त्र, सत्संग आवश्यक है। ___ यहाँ पर हम अपने चित्त के संक्लेशों से मुक्ति पाने के लिए चित्त को प्रशिक्षित करने का अभ्यास व पुरुषार्थ कर रहे हैं । अज्ञान हमारे चित्त का पहला कष्ट है, पहला आंतरिक दुःख है। अहंभाव दूसरा कष्ट तथा राग तीसरा व द्वेष चौथा कष्ट है। कहने को तो राग व द्वेष अलग दिखाई देते हैं पर हैं एक ही सिक्के के दो पहलू। उन सहोदरों की तरह है, जो एक ही माँ के गर्भ से पैदा हए हों। पर दोनों ही घातक हैं। राग थोड़ा अच्छा लगता है, सुहाता है, क्योंकि राग से ही संसार का निर्माण होता है। द्वेष घातक है, स्वयं को भी नुकसान पहुंचाता है और दूसरों को भी। लेकिन अन्ततः
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