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भी उत्पन्न होती है लेकिन थोड़े दिन बीतते न-बीतते वही वापस पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं। ठोकर लगी भी, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। सोचते रहने पर आज तक कोई कुछ नहीं कर पाया है। जो करना है अभी और तुरंत कर डालो। नहीं तो केवल देखते ही रह जाओगे।
ठोकर लगने पर इंसान जगता है, निमित्त मिलने पर इंसान बदलता है। रोजरोज ठोकर नहीं लगती,रोज-रोज निमित्त नहीं मिलते। यह तो कभी-कभी ईश्वर के घर से संकेत होता है कि बंदे संभलना है तो संभल जा, वरना ठोकरें खाते-खाते ही मर जाएगा। जब जागें, तभी सवेरा। एक तो सूरज सवेरे का संदेशा लाता है, दूसरा आपके जागृत होने से सवेरे का संदेश मिलता है। जन्म वह नहीं है जो माँ-बाप देते हैं असली जन्म वह है जो हम ख़ुद को ख़ुद देते हैं। जब हमने स्वयं को नया जीवन दिया तो वह है सच्चा जन्म। मरने से पहले स्वयं को जन्म अवश्य दे दें। यही जीवन की दीक्षा है। जीवन को पाना सच्चा जन्म नहीं है, जीवन को बदलना सच्चा जन्म है। धुएँ की तरह जिए तो क्या जिए? धुएँ की तरह धूं-धूं कर जीना तो मरने से बदतर है। दीपक की तरह जलना, प्रकाशित होना ही व्यक्ति की सच्ची साधना है।
हम सोचें - अगर हमारी जिंदगी में केवल एक ही दिन बचा हो जीने के लिए तो हम कैसे जीना चाहेंगे? अपना दिन क्या आलस्य में बिताएँगे,रोते-बिलखते-सोते हुए बिताएँगे या हम पूरा दिन सार्थक बनाएँगे? सुबह उठकर पूजा-पाठ भी करेंगे, प्रार्थना भी करेंगे, मित्रों से मिलेंगे, परिवार को एकत्रित कर खाना भी खिलाएँगे, थोड़ा घूमने-फिरने भी जाएँगे। कुछ अच्छी पुस्तक या शास्त्र भी पढ़ना पसंद करेंगे। दिन भर में अनेक काम कर डालेंगे। क्योंकि आज जीवन का आखिरी दिन है। भला जब भगवान फ्री में इतने दिन दे देता है तो दिनों की कोई क़ीमत नहीं होती। अगर भगवान हर दिन की क़ीमत ज़्यादा न सही, केवल 500 रुपए भी लेना शुरू कर दे तो जैसे दैनगी पर लगाए गए मज़दूर के हर घंटे का उपयोग करने के प्रति आप सजग रहते हैं, वैसे ही आप अपने हर दिन, हर दिन का हर घंटा, शायद मिनट-टू-मिनट का भी उपयोग करेंगे।
शुल्क लगते ही आदमी संभल जाता है। फीस से ही डॉक्टर की क़ीमत होती है और फीस से ही वकील की। अरे भाई, जीवन की भी फीस होनी चाहिए। जब एक डेमेज गुर्दे को नया लगाओ तो दस लाख की फीस चुकानी पड़ती है और हार्ट ब्लॉकेज हो जाए तो हार्ट सर्जरी की 5 लाख फीस लगती है। जितनी बड़ी फीस, वह चीज़ उतनी ही क़ीमती।
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