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अविद्या से घिरे हुए हैं विद्या की ओर, सन्मति की ओर, श्रेष्ठ बुद्धि की तरफ लेकर चल, ताकि तेरी प्रेरणा से हमारे जीवन में सदा नेक, अच्छे और पवित्र कार्य होते रहें। भीतर की भावनाएँ अगर प्रकाशवान हैं, इनमें अगर ध्यान, योग, ईश्वर, भगवत् चेतना. अरिहंत, वीतराग-चेतना, ओंकार का ध्यान आदि का श्रेष्ठ आलम्बन लेते हैं तो निश्चित ही हमारी अविद्या में विद्या का प्रकाश प्रसारित होगा।
तात्पर्य यही है कि स्वयं को मुक्त करना हमारे ही हाथ में है, व्यूह-चक्रों से निकलना भी हमारे ही हाथ में है। लेकिन जान लें कि वृत्तियों के चक्रव्यूह में से निकलना बहुत बड़ी साधना है, तपस्या है, संन्यास है। फिर भी कहीं से तो प्रारम्भ करना ही होगा। ज्यों-ज्यों ज्ञान का प्रकाश फैलेगा, त्यों-त्यों अज्ञान का अंधकार कम होगा। अज्ञान के अंधकार को दूर करने का चिराग़ आपके भीतर प्रकाशित हो, इसी शुभ भावना के साथ नमस्कार।
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