________________
में पारंगत पंडित बन सकता है। बस, केवल नियमितता चाहिए। नियमितता ही परिणाम देती है। मात्र करना नहीं, नियमित, लगातार, सतत् करते रहना परिणाम देता है। वर्तमान समय में न कोई बुद्ध है, न सर्वज्ञ है, न केवली है - फिर हम क्या करें, कैसे चित्त का निरोध करें । बौद्धिक रूप से तो गुरुजन हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं लेकिन आध्यात्मिक रूप से हमारी वृत्तियों को शुद्ध और परिमार्जित करना
चुनौतीपूर्ण कार्य है। कहने को तो संत और गुरु हज़ारों हैं, पर ऐसा संत या गुरु तो हज़ारों में दो-चार होते हैं जो हमारे चित्त का कायाकल्प कर दें।
कहते हैं : राजकुमार मेघ ने भगवान की दिव्य वाणी को सुनकर संन्यास धारण कर लिया था। पहला ही दिन था। रात को सोया हुआ था, जिस कक्ष में सोया हुआ था उसमें और भी अनेक संत सोये हुए थे। संतों की आवाजाही और पदचाप से वह धैर्यपूर्वक नींद न ले पाया। वह विचलित हो गया। उसने वापस राजमहल लौटने की मानसिकता बना ली। अलसुबह वह जैसे ही लौटने लगा कि भगवान ने उसके गिरते हुए क़दमों को संभाल लिया। भगवान ने कहा, 'वत्स! अपने आपको जीतने के लिए चला था। क्या केवल एक रात में ही फिसल गया?' मेघ भगवान की इस बात को सुनकर अचंभे में पड़ गया कि इन्हें कैसे पता चला कि मैं घर लौट रहा हूँ? वह भगवान के चरणों में जाकर गिर पड़ा। भगवान ने कहा, 'अपने पूर्व जन्म में एक खरगोश पर की गई महान् दया के कारण आज तुम राजकुमार बने । उस जन्म में तुम एक हाथी थे। ताजुब तुम एक हाथी होकर भी दयाशील हो गए और आज राजकुमार होकर भी सहनशील और समताशील न बन पाए।' भगवान की इन बातों को सुनकर उसकी आत्मा इतनी उद्वेलित हो गई कि पूर्व जन्म के वे दृश्य आँखों के सामने साकार हो उठे। एक विचलित आत्मा फिर से स्थिर हो गई। इस तरह मेघ मुक्त हो गया।
हमारे पास भगवान जैसा सान्निध्य तो है नहीं जो हमारी आत्मा के भीतर प्रवेश करके हमें जगा दे, हमें चेता दे, हमें रास्ता दिखा दे। हम शास्त्र खंगालते हैं, संतों के ज्ञान में से कुछ तलाशने की कोशिश करते हैं, यही सोचकर कि शायद उनके दिव्य ज्ञान में से हमें कोई किरण मिल जाए।अपनी इसी जिज्ञासा और पिपासा के चलते ही तो हम पतंजलि के भी पास पहुंचे हैं। पतंजलि के योग-सूत्रों में से कोई सूत्र निकाल रहे हैं। शायद कोई काम बन जाए, कोई दिशा मिल जाए, कोई चमत्कार हो जाए, कोई रूपांतरण घटित हो जाए।ऐसा रूपांतरण जिसे हम कह सकें - अपूर्व! अपूर्व!! अपूर्व!!!
आज हम एक ऐसी विधि का प्रयोग करेंगे जिसके द्वारा अपनी वृत्तियों के
50 |
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org