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रसोईघर में हूँ।' अर्जुन अंधेरे में सँभलकर चलते हुए भीम के पास पहुँचा और पूछा,
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'भैया, अमावस की अंधियारी रात में तुम खाना कैसे खा रहे हो ?' भीम ने बताया कि
वह तो रोज़ ही रात में आकर खाना खाता है। अर्जुन ने कहा, 'पर खा कैसे लेते हो, तुम्हारे हाथ का कौर मुँह में जाता है या नाक में?' भीम ने कहा, 'भैया ! वह तो सीधा मुँह में जाता है ।" पर कैसे?' भीम ने ज़वाब दिया, 'अरे भाई, रोज़ के अभ्यास से । ' 'अभ्यास' - यही शब्द अर्जुन को गहन प्रेरणा दे गया । उसने अपना धनुष उठाया और रात के अंधेरे में ही निकल पड़ा लक्ष्य-संधान के अभ्यास के लिए । गुरु द्रोण की आँख खुलती है, धनुष की टंकार सुनकर वे बाहर आते हैं और कहते हैं, यह ज्ञान तो मैंने तुम्हें दिया ही नहीं कि रात के अंधेरे में कैसे तीर चलाया जाए, , फिर यह अभ्यास तुमने कैसे शुरू किया। अर्जुन ने कहा, 'गुरुदेव, भीम भैया के शब्दों से प्रेरित होकर !' गुरु द्रोण ने पूछा, 'कौन से शब्द ?' अर्जुन ने कहा, 'अभ्यास, निरंतर अभ्यास। जब भीम रात के अंधेरे में निरंतर अभ्यास के कारण भोजन खाना सीख गया तो मुझे लगा कि यह अर्जुन निरंतर अभ्यास करके रात्रि में लक्ष्य-संधान करना क्या नहीं सीख सकता?'
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योग भी अभ्यास से जुड़ा हुआ है फिर चाहे वह अभ्यास आसन, प्राणायाम या ध्यान के रूप में किया जाए। अगर हम निष्ठापूर्वक, मनोयोगपूर्वक इसे करेंगे तो निश्चय ही आसन हमारे स्वास्थ्य और शरीर के लिए लाभदायी होंगे। प्राणायाम हमारे प्राणों के ऊर्जा - जागरण में मददगार बनेगा और ध्यान हमारे चित्त की वृत्तियों को निर्मल करने में, चित्त के भटकावों को रोकने में और चित्त को अध्यात्म-भाव की ओर आगे बढ़ने में सहायक होगा। इसके लिए आवश्यकता सतत अभ्यास की है ।
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पतंजलि कहते हैं अभ्यास और वैराग्य ! वैराग्य अर्थात् अनासक्ति । वैराग्य का अर्थ केवल संन्यास लेना ही नहीं है । संन्यास का एक अर्थ वैराग्य भी है लेकिन संन्यासी होकर कुटियाओं को भी महल बनाने के लिए प्रयत्नशील हो जाओगे तो वह संन्यास वैराग्य नहीं होगा । इसलिए वैराग्य है अनासक्ति । अनासक्ति अर्थात् संसार में निर्लिप्त-भाव से जिओ । निर्लिप्तता हमें द्रष्टा-भाव की ओर ले जाती है और जो द्रष्टा होता है वह कुछ भी ग्रहण नहीं करता । न किसी कर्म को, न किसी कषाय को, न राग-द्वेष को । अनासक्त व्यक्ति महायान को पार कर जाता है। आसक्ति ही संसार है और अनासक्ति ही मोक्ष है । आसक्ति का परिणाम है मृत्यु और अनासक्ति का परिणाम है मोक्ष । आसक्ति पुनर्जन्म के बीज बोती है, जबकि अनासक्ति जन्म-मरण की जड़ों को ही उखाड़ फेंकती है।
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