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अधिक सेंटरलाइज करें। माना कि भीतर में गंदगी भी है, पर अगर इस गंदगी को भी यदि रूपांतरित करने की कला आ जाए तो यह गंदगी ही खाद बनकर किसी पौधे को फूलों की खुशबू दे सकती है। साधना परिवर्तन का नाम है, स्वयं को जीत लेने का नाम है। उधर आपके सामने ही खड़ा है एक डॉग। डॉग एक प्रतीक है। भौंकने का, गुर्राने का, खीझने का, स्वार्थ का। हम इस डॉग को उलट डालें। बन जाएगा 'गॉड'। जीवन का यही तो खेल है। कोई गॉड उलटकर बन गया डॉग और कोई डॉग उलटकर बन गया गॉड। डॉग बन गए यानी पशु की श्रेणी में चले आए वहीं अगर गॉड बन गए तो प्रभु की श्रेणी में पहुँच गए। एक में पतन है एक में उत्थान है, एक में गिरावट है तो एक में खिलावट है।
हम ध्यान से साक्षात्कार करें और ध्यान में अपने चित्त से साक्षात्कार करें। आत्मानुभूति कब होगी यह तो स्वयं आत्मा की अपनी इच्छा पर निर्भर है। देवता कब प्रकट होंगे यह दैवीय शक्ति की इच्छा पर है। हम तो केवल चित्त को निर्मल करने का प्रयत्न कर सकते हैं। बीज बोना हमारा काम है, उसे सींचना हमारा दायित्व है, अपने बोए गए बीजों की रक्षा करना हमारी ज़वाबदारी है। फल कैसा आएगा, फूल किस तरह के खिलेंगे, यह सब तो प्रभु और प्रकृति की व्यवस्थाओं पर निर्भर है। हमारे लिए सुकून की बात सिर्फ इतनी-सी है कि हमने प्रयास किया, अभ्यास किया, पुरुषार्थ किया। कहते हैं भागीरथी को लाने में कई पीढियाँ बीत गईं, पर जिसके क़दम चलते रहते हैं वह एक-न-एक दिन अवश्य पहुँचता है। स्वर्ग में रहने वाली गंगा तब धरती पर उतर आती है। पुरुषार्थ के साथ धैर्य और विश्वास तो चाहिए ही।
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जावत तें सिल पर पड़त निशान॥ अथवा यों कहिए -
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आय फल होय ॥ अपने आप परिणाम आता है, बस अभ्यास जारी रहे। अगर परिणाम नहीं आया है तो इसका मतलब है कि अभ्यास अभी कमज़ोर है। वह कहानी तो याद है न-जिसमें कहा गया है- भीम रात के अंधेरे में भोजन कर रहा था। अर्जन जब रात में जगा तो उसने पाया कि भीम पास में नहीं है। वह ढूँढ़ने के लिए बाहर निकला, अमावस की रात, घुप्प अंधेरा, हाथ को हाथ न सूझे। किसी प्रकार रसोई की ओर बढ़कर उसने आवाज़ दी, 'भीम भैया!' भीम ने कहा, 'हाँ, अर्जुन! मैं यहाँ
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