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स्वभाव-परिवर्तन : योग का पहला चमत्कार
मेरे प्रिय आत्मन्,
मनुष्य की सारी गतिविधियाँ उसके अन्तर्मन से संचालित होती हैं। जीवन के सारे बंधन और उसकी आध्यात्मिक स्वतंत्रता के लिए भी अन्तर्मन ही उत्तरदायी होता है। उसके बाह्य संबंध, बाह्य क्रिया और बाह्य गतिविधि अवश्य ही प्रभावकारी व परिणामदायी होते हैं, लेकिन बीज तो अन्तर्मन में ही होता है। सोच-विचार, कर्म या प्रकृति के रूप में जो भी शुरू होता है वह अन्तर्मन से ही आता है।
महर्षि पतंजलि ने हमें उसी अन्तर्मन से साक्षात्कार कराते हुए उसकी शुद्धि, सिद्धि और समाधि के लिए योगसूत्रों का प्रतिपादन किया है। उन्होंने जाना कि मनुष्य का अन्तर्मन ही जीवन की समस्त गतिविधियों का आधार और पुरोधा है। इसलिए योगसूत्रों में मन को विश्लेषित करने का प्रयास किया है।
अन्तर्मन के दो पहलू हैं - मन और चित्त । मन वह है जो विचार और विकल्पों के रूप में अनुभव होता है और चित्त वह है जो हमारी मूल वृत्तियों के रूप में जो तत्त्व अंदर समाहित रहता है उसका ज्ञान करता है। योग का उद्देश्य व्यक्ति को शांतिमय बनाना तो हो सकता है लेकिन मुख्य उद्देश्य चित्त की शुद्धि करना है। चित्त की निर्मल 44 ||
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