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है। उन्हें क्या करना है और क्या नहीं, वे नहीं जानते । यह ठीक है कि हर इंसान की, हर युग की अपनी कमियाँ होती हैं लेकिन इन कमियों और कमजोरियों को दुरुस्त करने के लिए हमें एक ऐसे सीधे और सरल मार्ग की ज़रूरत है जो इंसान को भीतर से स्वस्थ, प्रसन्न, एकाग्र,शांतिमय और आनन्दपूर्ण बनाए।
योग ऐसा ही मार्ग है। योग व्यक्ति के विक्षिप्त चित्त को संक्षिप्त करता है। भटकते मन को एकाग्र करता है। व्यर्थ के विचारों में फँसा रहने वाला इंसान सार्थक और सकारात्मक विचारों की ओर बढ़ने लगता है। योग के द्वारा हमारी विचारशक्ति तो प्रबल होती है, लेकिन विचारों की उठापटक शांत हो जाती है। विकल्पों की उधेड़बुन मिट जाती है, पर संकल्प और संकल्पों की शक्ति चौगुनी हो जाती है। क्योंकि योग का प्रारम्भ ही ऐसे होता है कि व्यक्ति किसी एक बिंदु पर अपनी मानसिक शक्ति को एकाग्र करने का प्रयास करता है। भटकते चित्त पर अंकुश लगाना ही योग है।
योग विशुद्ध रूप से स्वयं को स्वयं से जोड़ने की कला है। योग हमें सिखाता है कि संसार में हमें कमल की पंखुड़ियों की तरह निस्पृह और निर्लिप्त होकर जीना चाहिए और अपने वर्तमान जीवन के साथ मैत्री और प्रेमपूर्ण संबंध स्थापित करते हुए उसे ऊर्जावान, उत्साहभरा, आत्मविश्वास से परिपूर्ण जीवन जीना चाहिए। आज हम देखते हैं कि विद्यार्थी विद्यार्जन के प्रति बहुत गम्भीर हुआ है लेकिन उसने जो लक्ष्य बनाया है, उस लक्ष्य को हासिल न कर पाया तो वह निराश, हताश, उदास हो जाता है। सफलता तो मिलती है लेकिन सामने आई असफलता का सामना करने की ताक़त ख़त्म हो चुकी है। प्राप्त हुई सफलता का आनंद नहीं ले पाता और असफलता से उबरने का साहस नहीं है। जबकि हम जानते हैं सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहल हैं। जहाँ सफलता का इतिहास लिखा होता है वहाँ विफलता की कहानी भी लिखी होती है। चलते हुए कभी न कभी तो ठोकर लगती है। माँ के गर्भ से तो हम केवल पैदा होते हैं शेष जीवन तो चलते-फिरते, गिरते-पडते, उठतेठोकर खाते ही हमारा निर्माण होता है। कोई भी पत्थर शुरू से गोल नहीं होता, लेकिन लुढ़कते-गिरते पानी की धाराओं का सामना करते हुए कभी वही पत्थर शिवलिंग बन जाता है।
विफलताएँ तो हर किसी को मिलती हैं लेकिन उनका सामना कैसे करें? हमारे पास यह शक्ति अवश्य होनी चाहिए जिससे हम असफलता का सामना कर सकें। पर प्रश्न है कैसे? इसका उत्तर है योग! योग हमें वह शक्ति देता है जो धैर्य प्रदान करता है, सफलता और असफलता के मध्य चित्त का संतुलन बनाकर रखता है। 34/
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