________________
उनके हाथ से खीर चली जाती है। सपने देखना बंद करो और जीवन की सच्चाइयों से, वास्तविकता से जुड़ो। फैंटेसी अधिक काम की नहीं होती। बड़ी-बड़ी बातों से जिंदगी नहीं बदलने वाली। हमने जो बातें पहले सुन रखी हैं आवश्यक नहीं कि वे आज भी जीवन में कायम हों। हम लोग आगे तो बढ़ते जाते हैं, पर पीछे से खाली होते जाते हैं - आगे पाट, पीछे सपाट। इसीलिए योग-सूत्र के ये छोटे-छोटे वाक्य चमत्कार का काम करते हैं। जी भर के जिओ, पर ऐसी ज़िंदगी जिसमें शांति हो, माधुर्य हो और आनन्दपूर्ण दशा भी हो। दो शब्द सुनने की क्षमता भी हो। भगवान महावीर ने तो कानों में कीलें ठुकवा लर थीं। हम दो शब्द तो झेल सकते हैं। जीसस को तो सलीब पर चढ़ा दिया गया। हम कम-से-कम नंगे पाँव तो चल सकते हैं। सुकरात को ज़हर का प्याला दिया गया हम फीका दूध तो पी सकते हैं ! कुछ-न-कुछ तो हम भी कर सकते हैं।
हम हक़ीकत से जुड़ें- ज्ञान वह नहीं है जो किताबों में लिखा है, ज्ञान वह भी नहीं है जो रोज सुना जाता है। ज्ञान वह है जो कम मात्रा में ही क्यों न हो, पर जीवन में जिया जाता है। मटका-भर न सही,चुल्लू भर तो पी सकते हैं? हम अपनी बुद्धि को ज्ञान के ख़ज़ाने से भर ज़रूर लेते हैं पर ढूँढने से भी ज्ञान की रोशनी नहीं मिलती है। धृतराष्ट्र को नेत्रहीन कहा जाता है, लेकिन जिसके पास ज्ञान है, पर उसे आचरित नहीं करता वह प्रत्येक इंसान धृतराष्ट्र है। कोई सिगरेट-बीड़ी पी रहा है, शराब का सेवन कर रहा है, तम्बाकू-गुटखा खा रहा है - अंधा ही तो है - सब कुछ पढ़ रहा - वैधानिक चेतावनी लिखी हुई है फिर भी उपयोग किए जा रहा है, अंधा ही तो है। इन्सान ज्ञान को देने की चीज़ तो मानता है पर लेने की चीज़ नहीं मानता।
मैं तो विद्यार्थी हूँ, ज्ञान का पिपासु। हर किसी से ज्ञान लेने को तैयार । मैं मानता हैं कि ज्ञान जीवन में जीने के लिए है। वह ज्ञान ही क्या जो जीवन में जिया न जा सके;
और जिसे तुम जी नहीं सकते वह ज्ञान दूसरों को मत बाँटो। जिसका तुमने अनुभवले लिया है वही ज्ञान बाँटो। अनुभवहीन ज्ञान प्रकाश नहीं बन पाता। वह केवल शब्दों का आदान-प्रदान भर बन जाता है।
सागर में जैसे लहरें उठती हैं वैसे ही मन में उठने वाली तरंगें वृत्तियाँ हैं । हमारा चित्त भी सागर की तरह है। चित्त जिसे मन भी कहते हैं, हमारे दिमाग का 'विल पावर' है, हमारे दिमाग में छाई ऐसी संस्कार-धारा है जो हमें प्रत्येक कार्य को करने की भीतर से प्रेरणा देती है। जीवन में भी जो कुछ घट रहा है, जो प्रवाह है, जो दबाव बन रहा है वह चित्त से प्रेरित है। इंसान जानता है कि क्या नहीं करना चाहिए लेकिन
41
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org