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योग और प्राणायाम हमारे शरीर में ऊर्जा की बैटरी संचालित करते है। जिस तरह खिलौनों को चलाने के लिए चाबी भरते हैं या बैटरी डालते हैं, उसी तरह प्राणायाम और योग की चाबी तन को स्वस्थ रूप से चलाती है। इसलिए पहले चरण में ही ध्यान धरने की कोशिश मत करो, चूक हो सकती है, न ही पहले चरण में प्राणायाम करें। पहले चरण में आसन करें - पहले काया को थोड़ा बलवान बना लें, इसे ऊर्जावान और सशक्त कर लें। आसन करते हुए शरीर पर अत्यधिक दबाव न डालें,शरीर थक जाए तो बीच-बीच में दो-पाँच मिनट का आराम कर लें।एक साथ बहुत से योगासन न करें, धीरे-धीरे आदत बनाएँ। अब प्राणायाम करें। चाहे भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें। सभी को धीरे-धीरे अपने शरीर के साथ जोड़ें। मैंने प्राणायाम के कुछ सीधे सरल तरीके इज़ाद किए हैं, जिन्हें आप साधना-शिविर में आकर सीख सकते हैं।
योग को तन, मन और बुद्धि से जोड़कर, जब इन्हें निरोगी, नियंत्रित, शांत और एकाग्र करने में सफल हो जाएँ तब आत्मा, आत्मचिंतन, अध्यात्म और परमात्मा के प्रति अपने ध्यान को दत्तचित्त करने का प्रयास करें।हम जानते हैं आत्मा तो अदृश्य है वह इतनी जल्दी अनुभव में आने वाली नहीं है। अभी तो प्राणवायु ही पकड़ में नहीं आती, मन ही नियंत्रित नहीं हो रहा, दिमाग भी शांत नहीं हो पाया है तो ऐसा अशांत व्यक्ति आत्मा की अनुभूति की ओर कैसे बढ़ पाएगा। धीरे-धीरे सभी चीजें अपने परिणाम को प्रदान करती हैं।
महर्षि पतंजलि ने योग-विज्ञान देकर हमारे सामने जीवन जीने का आध्यात्मिक तरीका प्रदान किया है। इससे हम स्वस्थ, शांत, ऊर्जावान, बुद्धिमान, आत्मवान और परमात्मप्रिय हो सकते हैं। स्वास्थ्य से समाधि तक का सफ़र पार करना ही योग है।
आज के लिए इतना ही। नमस्कार।
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