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पुरुषार्थ पूर्वक ध्यान केन्द्रित किया था अब वह भी करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अब हम केन्द्रित हो चुके हैं। अब पाँच से दस मिनट, चाहे जितने समय हमारे योग की जो प्रगाढ़ता बनी है उस समाधि-दशा में अंतरलीन हों। अब हम किसी बिंदु पर केन्द्रित नहीं हो रहे हैं, बल्कि शांत समाधि की दशा में उतर रहे हैं, स्थित हो रहे हैं। जब लगे कि हमारा चित्त अपनी सहज प्रकृति में आ गया है तब जानना कि आपकी एक बैठक पूर्ण हो गई है। आध्यात्मिक चेतना और अतीन्द्रिय-शक्ति को प्राप्त करने के लिए हमें अधिक-से-अधिक ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। __यह जो एक घंटा हमने योग को समर्पित किया इसने हमारे तन, मन, प्राण, बुद्धि एवं आध्यात्मिक चेतना सभी को सभी प्रकार से स्वस्थ किया।अब हम स्वस्थ, समर्थ और ऊर्जावान बन चुके हैं। योग तो जीवन जीने का बेहतर तरीका है। किसी भी चीज को अपनाने के लिए एक विधि से, एक मेथड से तो गुजरना ही होगा। कोई-न-कोई ढंग तो अपनाना ही होगा। जब हम उस विधि के अभ्यस्त हो जाएँगे तो स्वतः ही सब सरलता से कर पाएंगे। जैसे तबला सीखने के लिए अंगुलियाँ कैसे चलाई जाएँ, आगे संगत कैसे दी जाए, ताल कैसे मिलाई जाए, यह सब जानना होता है। वैसे ही ध्यान की विधि सीखनी होती है। एक बार ज्ञान हो जाने पर स्वयं ही अंगुलियाँ चलने लगती हैं, तब हमें किसी सहायक या मास्टर की ज़रूरत नहीं होती। ध्यान और प्राणायाम में तो साँस ही हमारा गुरु है, साँस ही हमारा मास्टर है, साँस ही साधना की सीढ़ी है।
एक बार ढंग से योग, प्राणायाम और ध्यान किसी गुरु के सान्निध्य में सीख लें फिर तो ये हमारे जीवन के अभिन्न अंग हो जाएँगे।जैसे सूर्य का प्रकाश सूर्य के साथ, मनुष्य की छाया मनुष्य के साथ, फूल की खुशबू फूल के साथ रहती है वैसे ही योग हमारी हर गतिविधि के साथ संलग्न हो जाएगा।कहते हैं -
__ हंसिबो खेलिबो धरिबो ध्यानम्। जब हंसते-खेलते भी ध्यान धर लोगे तब योग का परिणाम पूर्णता से प्रकट होगा। व्यक्ति के हर कार्य-कलाप और क्रिया से ध्यान की आभा प्रकट होनी चाहिए।जो मन को दुरुस्त करे वह ध्यान, जो प्राणों को ठीक करे वह प्राणायाम और जो काया को स्वस्थ करे उसका नाम है योग। योग यानी जोड़।जो जोड़े उसका नाम योग। जो हमें हमारे प्राणों से, हमारी आत्मा से जोड़े उसका नाम है योग। योग स्वास्थ्य,शांति, प्रज्ञा और मुक्ति का दाता है।
योग - युज्यते इति योगः - जो हमें जोड़ता है वह योग। जो हमें जीवन के
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