Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ब्राह्मण-पुत्री का पाणिग्रहण နုနုနနနနနနနနနန
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आग लगा दी । भवन जलने लगा। उग्र रूप से ज्वालाएँ उठने लगी। अब आग लगाने वाले कालाहल कर सुसुप्त लोगों को जाग्रत करने और आग बुझाने का प्रयत्न करने लगे।
ब्रह्मदत्त ने कोलाहल सुना तो वरधनु से पूछा--"यह कोलाहल कैसा ?"वरधनु ने उसे उसकी माता के षड्यन्त्र की जानकारी दी और उस स्थान पर ले गया जहाँ सुरंग का द्वार था । द्वार खोल कर दोनों मित्र सुरंग में उतर गए और चल कर दूसरे द्वार से वन में निकले । वहाँ उनके लिये शीघ्रगामी दो अश्व और कुछ सामग्री ले कर महामंत्री उपस्थित था। दोनों को हित-शिक्षा और अश्व दे कर आशीर्वाद देते हुए बिदा किया।
घोड़े सधे हुए और बिना रुके दूर-दूर तक धावा करने वाले थे। वे बिना रुके एक ही श्वास में ५० योजन चले गये और ज्योंहि रुके तो चक्कर खा कर नीचे गिर गये और प्राग-रहित हो गए। अब दोनों मित्र अपने पाँवों से ही चलने लगे। वे चलते-चलते कोष्टक गाँव के निकट आये। वे भूख-प्यास और थकान से अत्यन्त क्लांत हो गए । ब्रह्मदत्त ने कहा--"मित्र ! भूख-प्यास के मारे मैं अत्यन्त पीड़ित हूँ। कुछ उपाय करो।" वरधनु ने कहा--"तुम इस वृक्ष की छाँह में बैठो, मैं अभी आता हूँ।" वह ग्राम में गया और एक नापित को बुला लाया। नापित से दोनों ने शिखा छोड़ कर शेष सभी बाल कटवा लिये । इसके बाद उन्होंने महामन्त्री के दिये हुए गेरुए वस्त्र पहिने और ब्रह्मदत्त ने गले में ब्रह्मसूत्र (जनेऊ) धारण किया, जिससे वह क्षत्रिय नहीं लग कर ब्राह्मण ही लगे । ब्रह्मदत्त के वक्षस्थल पर श्रीवत्स का लांछन था, उसे वस्त्र से ढक दिया गया। इस प्रकार ब्रह्मदत्त और वरधनु ने वेश-परिवर्तन किया और ग्राम में प्रवेश किया।
ब्राह्मण-पुत्री का पाणिग्रहण
उस ग्राम के किसी विद्वान् ब्राह्मण ने उन्हें देखा और उन्हें कोई विशिष्ट पुरुष जान कर अपने यहाँ आदर सहित बुलाया । उत्तम प्रकार के भोजनादि से उनका सत्कार किया । भोजनोपरांत ब्राह्मणपत्नी ने कुंकुम-अक्षत और वस्त्रादि से ब्रह्मदत्त को अचित कर, अपनी सुन्दर पुत्री का पाणिग्रहण करने का आग्रह किया। यह देख कर वरधनु भौचक्का रह गया । तत्काल वह बोल उठा--
"माता ! यह क्या अनर्थ कर रही हो ? जाति-कुल-शील एवं विद्या से अज्ञात व्यक्ति के साथ अपनी लक्ष्मी के समान पुत्री का गठबन्धन करने की मूर्खता मत करो।
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