Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रक्षक ही भक्षक बने
दीर्घ और चूलनी की काली-करतूत वृद्ध मन्त्री से छुपी नहीं रह सकी । वह पृथक् रहते हुए भी अपनी पैनी दृष्टि से इनके षड्यन्त्र को समझ रहा था। भवन-निर्माण में लाक्षारस के प्रयोग का रहस्य उससे छुपा नहीं रह सका । मन्त्री ने इस षड्यन्त्र को निष्फल करने के लिए राज्य सेवा से मुक्त होने का संकल्प किया और राजा दीर्घ से निवेदन किया;--
___ "महाराज ! मैं अब वृद्ध हो गया हूँ। जीवनभर राज्य की सेवा की । अब अपनी आत्मा की सेवा करते हुए आयु पूर्ण करना चाहता हूँ। इसलिए मुझे पद-मुक्त करने की कृपा करें।"
राजा दीर्घ भी विचक्षण था। उसने सोचा--मन्त्री बड़ा विचक्षण है और राज्यभक्त भी । इसकी पैनी-दृष्टि में मेरी गुप्त प्रवृत्ति आ गई हो और उसके उपाय के लिये यह पदमुक्त हो कर किसी दूसरे राज्य में चला गया, तो मेरे लिये बहुत बड़ा बाधक हो जायगा । इसलिये इसे मुक्त नहीं करना ही ठीक है । उसने मन्त्री से कहा; --
“मन्त्रीवर ! आपकी शक्ति और बुद्धिमत्ता से ही राज्य फला-फूला और सुरक्षित रहा । आपके प्रभाव से राज्य शांति और समृद्धि से भरपूर है। हम आपको कैसे छोड़ सकते हैं ? आप अपने पद पर रहते हुए यथेच्छ दानादि धर्म का आचरण करें।"
दीर्घराजा की बात महामन्त्री धनदेव ने स्वीकार कर ली। उसने गंगा के किनारे एक दानशाला स्थापित की और स्वयं वहाँ रह कर पथिकों को अन्न-दान देना प्रारम्भ किया। साथ ही अपने विश्वस्त सेवकों द्वारा नगर से दो गाउ दूर से, गुप्त रूप से एक सुरंग खुदवाना प्रारम्भ किया जो लाक्षागृह तक लम्बी थी। इधर ब्रह्मदत्त के विवाह के दिन निकट थे। वैवाहिक प्रवृत्तियां प्रारम्भ हो गई थी। महामन्त्री धनदेव ने एक पत्र लिख कर, अपने विश्वस्त मनुष्य के साथ ब्रह्मदत्त के श्वशुर राजा पुष्पचूल के पास भेजा। पत्र पढ़ कर पुष्पचूल षड्यन्त्र और उसका उपाय जान गया। उसने अपनी पुत्री के बदले एक सुन्दर दासी-पुत्री को शृंगारित कर के विवाह के लिए काम्पिल्य नगर भेज दिया। दासी-पुत्री और राजकुमारी की वय, रूप और आकार-प्रकार समान था। सभी ने यही समझा कि यह राजकुमारी है। उसके साथ ब्रह्मदत्त का लग्न कर दिया। रात्रि के समय नव दम्पत्ति को लाक्षागृह में ले जाया गया। मन्त्री-पुत्र वरधनु, ब्रह्मदत्त के साथ था। वह अर्द्धरात्रि तक उससे बातें करता रहा। दीर्घ के भेदियों ने अनुकूलता देख कर भवन में
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