________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [27 ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वाद। इति सुदर्शनमेरु पूजा सम्पूर्ण। अथ सुदर्शनमेरुके चार विदिशामध्ये चार गजदन्तपर सिद्धकूट चार जिनमंदिर पूजा नं. 3 अथ स्थापना (मद अवलिप्तकपोल छन्द) जम्बूद्वीप महान् सर्वदीपनमें जानो। ताके मध्य सुजान सुदर्शन मेरु बखानो॥ जाकी विदिशा मांहि चार गजदंत बताए। तापर श्री जिन भवन सुपूजत मन हर्षाए॥१॥ दोहा-तिनकी आह्वानन सुविधि, करों भविक मन लाय। तिष्ठ तिष्ठ थापन सहित, वसुविधि पूज रचाय॥२॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुके चारो विदिशामध्ये चार गजदन्त तिनपर चार जिनमंदिर सिद्धकूट बिराजमानेभ्यो अत्रावतर२ संवोषट् आह्वाननं. अत्र तिष्ठ२ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट सन्निधिकरणम्, स्थापनम्। अथाष्टकं (चाल कार्तिकीकी) प्राणी उजल जलसु मंगायकै, धर रतन कटोरी मांहि। प्राणी श्रीजिन चरण चढ़ाईये, सब जन्मजरा दुख जाय। प्राणी श्रीजिनवर पद पूजिये, प्राणी मेरु सुदर्शनके कहे।