________________ 224] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SENSENSENSESSINESENSESESENSANKA दोहा-मंदिर गिर उत्तर दिशा ऐरावत सु विशाल। रुपाचल जिनभवन लख, जजों अर्घ त्रिकाल॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ अर्धं // अथ जयमाल ऐरावत वर क्षेत्रमें, गिर वैताड़ विशाल। मंदिर” उत्तर दिशा, तिनकी यह जयमाल॥१३॥ पद्धडी छन्द जै जै श्री मंदिरमेरु सार, उत्तर ऐरावत क्षेत्र धार / जहां छहो काल वरते अशेष, षट् खंडसहित भाषै जिनेश॥ जहां भोगभूम है तीनकाल, दश कल्पवृक्ष शोभै विशाल। जब लागें चौथा काल आय, तब कर्मभूम विध रही छाय॥ जै जब तीर्थंकर जन्म लेय, तब मातापिता बहु दान देय। चक्री बलहर प्रति वासुदेव, पदवी धारक त्रेसठ गिनेव॥ तहां श्वेत वरन वैताड़ जान, जैतापर जिनमंदिर महान। सब समोशरण रचना विचित्र, वेदीपर सिंहासन पवित्र॥ जैतहांजिनबिंब विराजमान, शतआठ अधिक प्रतिमा प्रमान। जै प्रात्यहार्य मंगल सुदर्व, विध यथायोग्य लहिये सुसर्व॥ सुर विद्याधर पूजै त्रिकाल, मुखपाठ पढे जिनगुण विशाल। जै नृत्य करें संगीत सार, विद्या बल रूप अनेक धार // दुंदुभि बाजे बजै सु जोर, अनहद साढ़े बारह करोर। जै जै जुकरैं सब जीव आय, भविलाल जीत बलर सुजाय॥