________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [321 SSSSSSSSSSSSSSSSSSSS सिद्धकूट तसु नाम रुचिक प्रभ, तापर श्री जिनभवन निहार। अमर अमरपति जजत अष्टविध, हम पूजत नित अर्घ संवार॥ ___ॐ ह्रीं कुण्डल द्वीप मध्ये कुण्डलगिरिके बीच दक्षिण दिश रुचिक प्रभनाम सिद्धकूटपर स्वयंसिद्ध जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ कुण्डलगिर पश्चिम दिश सोहै, पांच कूट कंचन धुति ताम। बाहर भाग चार भूपतिके, भीतर एक सरस सुख ठाम॥ तहां जिनभवन अनूपम सुन्दर, सिद्धकूट तसु हिमवन नाम। देव सचीपति वसुविध पूजत, हम ले अर्घ जजत जिनधाम॥ ___ॐ ह्रीं कुण्डलद्विप मध्ये कुण्डल गिरिके पश्चिमदिश हिमवन नाम सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // उत्तर दिशा सु गिर कुण्डलकी, पांच कूट सोहै सु विशाल। गिरके अंत चार सुर निवसैं, भीतर भाग एक सु विशाल॥ मंदिर नाम सु सिद्धकूटपर, जिनमंदिर सुर जजत त्रिकाल। वसुविध अर्घ बनाय गायगुण,निजधर जिन पूजत भविलाल॥ ॐ ह्रीं कुण्डलद्वीप मध्ये कुण्डलगिरिके उत्तर दिश मंदिर नाम सिद्धकूटपर स्वयंसिद्ध जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // जयमाला-दोहा कुण्डलगिर चारों दिशा, श्री जिनभवन विशाल। जिनपद शीश नवायकैं, अब वरनूं जयमाल॥१५॥ जै एक सरव वसु अरव जान। जै कोड़ पचासी अधिक मान॥ जोजन सु छिहत्तर लाख सार / इक इक दिशको आयाम धार // 16 //