Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [319 222222222222222 ह्रीं कुण्डलद्वीप मध्ये कुण्डलगिरिके चारों दिशा चार जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, स्थापनं। अथाष्टकं-चाल प्रमादिसूनकी क्षीरोदधि उनहार सु, जल भरि कंचन झारी। जिन सन्मुख दे धार, जरा मरनादि निवारी॥ सुरपति पूजत जाहिं, सिखर कुण्डल गिरवरके। हमें शक्तिसो नाहिं, जजत पद श्री जिनवरके // 2 // ___ॐ ह्रीं कुण्डलद्वीप मध्ये कुण्डलगिरि पर्वतके पूर्वदिश रूचिक नाम // 1 // दक्षिणदिश रूचिक प्रभ नाम // 2 // पश्चिम दिश हिमवन नाम // 3 // उत्तरदिश मंदिर नाम सिद्धकूट पर स्वयंसिद्ध जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ जलं॥ मलयागिर घस लाय सु, चंदन केशर झारी। जजत जिनेश्वर पाय, सो आताप निवारी॥ सुरपति. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ चन्द्र किरन सम श्वेत, अमल अक्षत ले ताजे। जिनपद पुज सु देत, अक्षय पद पावन काजे॥ सुरपति. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ वरन वरनके फूल धरे बहु परम लताई। हरत मदन मद शूल चरन, जिनराज चढ़ाई॥ सुरपति. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं॥ नानाविध पकवान, सिताधृत मिश्रित झारी। श्री जिनचरन महान, जजत तन क्षुधा निवारी॥ सुरपति. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं //

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