Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ = श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [317 = = = = = = = = = = जै श्यामवरन सोहै सरंग। जै सहस चार अस्सी उत्तंग॥ जै ताकी चारों दिश रिशाल। इक इक वापी सोहै विशाल // 27 // जै एक लाख जोजन प्रमान। जै निर्मल जल भर रहो जान॥ जै ता बिच दधिमुख गिर लसंत। दधिवरन सु उज्वल शोभवंत // 28 // जै उन्नत योजन सौ हजार। जै ता गिर ऊपर भवन सार॥ जै एक बावरी कोन दोय। जै विदिशामें रतिकर जु होय॥२९॥ रतिकर गिर उन्नत इक हजार। ता गिरपर जिनमंदिर निहार // सब समोशरन रचना अनूप। तहां पूजा करत सु अमर भूप // 30 // कर पूजा भक्त हिये सु आन। जिनबिंब निहारत हरष ठान॥ सुर नाचत जिनवरके हजूर / ____ता थेई थेई थेई धुन रही पूर॥३१॥ बहु पुन्य उपार्जन देव आय। नानाविध कर जिन गुण सुगाय॥

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