Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 332
________________ [323 श्री तेरहद्वीप पूजा विधान wwwwwwwwwwNNNNNNNNN घत्ता-दोहा कुण्डलगिर जिनभवनकी, पूजा बनी महान। जो बांचै मन लायकै, पावै अविचल थान // 23 // इति जयमाल। ___अथाशीर्वाद कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री नन्दीश्वर द्वीपमध्ये कुण्डलगिरिको चारोदिश चार सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ रुचिक द्वीप मध्ये रूचिकगिरिके चारोंदिश चार सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 62 अथ स्थापना-छप्पय छन्द रुचिक द्वीप तेरमो महा सुन्दर द्युति धारी। ताके बीच सु गोल, रुचिक गिर पर्वत भारी॥ चारों दिश जिन भवन, चार सोहैं सुखदाय। पूजत इन्द्र सुजाय, देव मिल चतुरनिकाय॥ घेरे द्वीप समुद्र सब, पहुचन कौन उपाय। याते आह्वानन सु कर पूजत जिनवर पाय॥१॥ ॐ ह्रीं रूचिक द्वीपमध्ये रूचिकगिरि पर्वतपर चारों दिशा चार सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं अत्र तिष्ठ

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