Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ 324 श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 2018888888888881 तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अब मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं स्थापनं। अथाष्टकं-चाल जयमालाकी क्षीरोदधि सम उज्वल महा नीर ले। हेम शृंगार भर धार जिन चरण दे॥ रुचिक गिर चार दिश जिनभवन सुर जजैं। हम सु पूजत यहां ध्यान धर जिन भ6॥२॥ ॐ ह्रीं रुचिकद्वीपके बीच रूचिकगिर पर्वतके पूर्वदिश // 1 // दक्षिण दिश॥२॥ पश्चिमदिश // 3 // उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ जलं॥ अधिक धनसार चंदन सु गुण सीयरो। जजत जिनचरण आताप भवकी हरो॥ रूचिकगिर. // 3 // ॐ ह्री. // चंदनं॥ स्वेत शशिकिरण सम धोय तन्दुल धरो। चरण जिनराज ढिग पुज भविजन करो॥ ___ रूचिकगिर. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल और केतकी, वर्ण सम जातकै। पूजा जिनवर सु पद फूल बहु भांतिकै // रूचिकगिर. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // सद्य पकवान धृत खण्ड, निश्चित लहा। पूज जिनपद कमल, थाल भर रूच महा॥ रूचिकगिर. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ रत्नमई दीप तसु, जोत उद्योत है। करत जिन आरती, मोह क्षय होत है // रूचिकगिर. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥

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