Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 336
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [327 worunununRRURNAROUNDUPINDUA जै जै जगतारन जै जिनेश, तुम चरणकमल सेवत सुरेश। हम करत वीनती नमत भाल, भवर तुम सेव करें सुलाल॥ घत्ता-दोहा रूचिक द्वीप जिनभवनकी, पूरन यह जयमाल। जो नर वांचें भाव धर, तिनके भाग विशाल // 24 // इति जयमाल। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढ़े अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति इत्याशीर्वादः इति श्री रुचिक द्वीप मध्ये रूचिकगिर चारों दिशा चार जिनमंदिर सिद्धकूट विराजमान ताको पूजा सम्पूर्णम्। इति श्री तिर्यक क्षेत्र मध्ये चौसठ जिनमंदिर सिद्धकूट तिन विर्षे रतनमई प्रतिमा तिनकी पूजन सम्पूर्णम्। इति श्री तेरहद्वीपके दिशा विदिशा मध्ये चारसौ अट्ठावन सिद्धकूट जिनमंदिर कृत्रिम अकृत्रिम गन्धकुटी और चैत्यालय सहित विराजमान ताकी पूजन पाठ विधान सम्पूर्णम्।

Loading...

Page Navigation
1 ... 334 335 336 337 338