Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 327
________________ 318] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 2222222222222222222 जै तुच्छ बुद्धि भवि लाल पाय। जिनचरण सु सेवत प्रीत लाय॥३२॥ __घत्ता-दोहा नन्दीश्वर उत्तर दिशा, वरनी यह जयमाल। जो वांचैभवि भावसौ, तिनके भाग विशाल // 33 // इति जयमाला। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुर नर पद ले शिवपुर जाय॥ ___ इति इत्याशीर्वादः इति श्री नन्दीश्वर द्वीपके उत्तर दिश त्रयोदश सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ कुण्डलद्वीपके बीच कुण्डलगिरिके चारोंदिश चार सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 61 अथ स्थापना-मंदअवलिप्तकपोल छन्द कुण्डल नाम द्वीप ग्यारमो, ताके बीच कहो गण धार। घेरे आधे द्वीप कनक द्युति, कुण्डलगिर कुण्डल आकार॥ चारों दिशा चार जिनमंदिर, सुरपति जजत भक्ति उर धार। हम तिनकी आह्वानन विधकर, जिनपद पूजत अष्ट प्रकार॥

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