Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 329
________________ सुरमा 320] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान នផលជលផលផលនៅសលផល दीपक ज्योति जगाय, दसों दिश होत उजारा। मोह तिमिर क्षय जाय, जजत पद जिनवर केरा॥ सुरपति. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥ दस विध धूप सुगंध, धूम ऊरथ सुखदाई। हरत कर्मको बंध दहत, जिन सन्मुख जाई॥ सुरपति. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं॥ फलकी जात अपार, मधुर गुण कोमल ताई। मोक्ष सुपद दातार, जजत जिनवर पद भाई॥ सुरपति. // 9 // ॐ ह्री. // फलं॥ जल फल दर्व मिलाय, अर्घ भर कंचन थारी। जजत जिनेश्वर पाय, लाल तिनकी बलिहारी॥ सुरपति. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ-कुसुमलता छन्द कुण्डलगिरकी पूरव दिशमें, पांच कूट भाषे जिनराय। चार शैलके अन्त बताए, उर ले एक रही द्युति छाय॥ सिद्धकूट तसु नाम रुचिक है, तापर जिनमंदिर सुखदाय। सुरसुरपतिनित पूजत तिनको, हम ले अर्घ जजत जिनपाय॥ ____ॐ ह्रीं कुण्डल द्वीप मध्ये कुण्डलगिरि पर्वतके पूर्व दिश रुचिक नाम सिद्धकूटपर स्वयंसिद्ध जिनमंदिरेभ्यो॥१॥अर्घ॥ दक्षिण दिश कुण्डलगिर केरी, पांच कूट सोहै सुखकार। पर्वत अन्त चार कंचनमई, पहली ओर एक उर धार॥

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