________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [295 Karirararararararararararararararararara पद्धडी छन्द जै सिद्ध कूट रचना विचित्र, जैतापर जिनमंदिर पवित्र। जै लम्बे हैं जोजन पचास, ताते आधे चौडे प्रकाश॥ जै उन्नत साढ़े सात तीस, जोजन महान भाषे गनीस। जै सिंहासन अद्भुत अनूप, तापर सुविराजत जगत भूप॥ जिनबिंब एकसौ आठ सार, अब समोसरन रचना निहार। जिन चरनकमल पूजत सुरेश, मुख जयजय भाषत अशेष॥ घत्ता-दोहा मानुषोत्तर जिन भवन की पूजा बनी विशाल। श्री जिनभवन निहारके, लाल नवावत भाल॥२३॥ इति जयमाला। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द / मध्यलोक जिनभवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढ़ अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री पुष्करार्ध द्वीप बीच मानुषोत्तर पर्वतके चारों दिश चार सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम् /