________________ 294] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==== =======gggggge लाल मुकुन्द वरन सोहै , परम छवि मनमोहनो। तीर्थेश श्री जिन न्हवन करत, सुरेश मन आनन्द घनो॥ तहां अगर अपछरा गीत गावै, हाव भाव उछावसों। जै जै करें सुर सबै मुखसों परम सुन्दर भावसों॥ जम्बू द्वीप सु घेरकै जग सार हो पाई वतपरमान। दोय लाख जोजन कहो जग सार हो, लवन उदध धर आन॥ उर आन लवनोदधि सु आगै, दीप दूजो जानिये। जोजन सु चार कहो जिनेश्वर, लाखको परमानिये // ता मध्य विजय अचल मनोहर दोय मेरे सु जिन कहो। कालोदधि वसु लाख जोजन अमल जल कर भर रहो। जोजन सोलह लाख को जग सार हो, पुष्करदीप महा। तामें मंदिर मेरु है जग सागर हो विद्युन्माली मान॥ मान आधो द्वीप इस गिन, और आधो उत्त गिनो। तिस बीच गिरधर मानुषोत्तर तासु वरनन अब भनो॥ चार सै अड़तीस जोजन, कन्द जाको जानिये। जोजन सु सत्रह से अधिक इक्कीस ऊचौ मानिये // ताको चारों दिश कहें जग सार हो, सोलह कूट महान। चार चार चारों दिशा जग सार हो, कंचन वरन सु जान॥ जान कंचन वरन सुन्दर, मनहरन सुरगन तने। तामें जु इक इक सिद्धकूट, अनूप, उपमाको भने / फुन तीन तीन सु और दो दिश, अगन ओर ईशान में। सब बीस कूट सु दोय ऊपर कहे जैन पुरान में //