Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [299 SarararararareersNrwarsawarene नंदवती वापी बीच मुख कोण सु रतिकरा। प्रथम तहां जिनगेह अधिक उपमा धरा॥ सुरपति.॥१६॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नंदवती वापी मुख कोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥ नंदवती वापी मुख कोण सु जानिये। दूजे रतिकर पर जिनभवन वखानिये॥ सुरपति.॥१७॥ __ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नंदवती वापी मुख कोण द्वीतिय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्थे / नन्दोत्रा वापी बीच ताके भनो।। दधि मुख गिरके शीश भवन जिनवर तनो॥ सुर. // 18 // ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नन्दोत्रा वापी बीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // नन्दोत्रा वापी सु कोण रतिकर दिपै। आदि श्री जिनधाम देख दिनकर छिपै॥ सुर. // 19 // ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नन्दोत्रा वापी मुख कोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ॥ बारह कोण सु जान वापी नन्दोतरा। रतिकर गिरके शीश, भवन जिन दूसरा॥ सुर. // 20 // ____ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नन्दोतरा वापी मुख कोण तीन रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥ वापी नन्दना तसु बीच निहारिये। दधिमुख पर जिनभवन सरस उर धारिये॥ सुर.॥२१॥ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नन्दलेना वापीबीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ //

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